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४२ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६
१५. धातुमशंसा - यह धातुओं का पद्यमय संग्रह है। इसकी रचना सीलवंस ने की है। मोग्गल्लान व्याकरण सम्प्रदाय
मोग्गल्लान द्वारा रचित पालि व्याकरण और इसे आधार बनाकर लिखे गये अन्य ग्रंथ मोग्गल्लान सम्प्रदाय के कहे जाते हैं। इसमें ८१७ सूत्र हैं और इस पर मोग्गल्लान की ही वृत्ति और पञ्चिका है। इसकी रचना राजा परक्कमभुज के शासनकाल १२वीं शताब्दी में हुई थी।
१. पदसाधन - यह बालावतार की तरह मोग्गल्लान व्याकरण का संक्षेप रूप है और इसके रचयिता मोग्गल्लान के शिष्य पियदस्सी शेर हैं।
२. पयोगसिद्धि • यह रूपसिद्धि के तरह का है और इसमें प्रक्रिया के संदर्भ में सूत्र भिन्न क्रम में दिये गये हैं। इसका रचनाकाल तेरहवीं शताब्दी के लगभग है। इसके प्रणेता वनरतन मेघंकर माने गये हैं।
३. मोग्गाल्लानपञ्चिकाप्रदीप - मोग्गल्लान वृत्ति विवरणपश्चिका की सिंहली भाषा में प्रस्तुत की गयी व्याख्या है। इसके प्रणेता सिंहल के प्रसिद्ध महास्थविर रहालु वाचिस्सर हैं। इसका रचना काल १४५७ है।
४. धातुपाठ - कच्चायन संप्रदाय की धातुमशंसा की अपेक्षा यह संक्षिप्त तथा गद्य में है। इसके रचयिता अज्ञात हैं। सद्दनीति
यह पालि व्याकरण के तृतीय सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है। इसकी रचना बर्मा के अरिमद्दन ने भिक्षु अग्गवंस ने ११५४ में की। विद्वान होने के कारण इन्हें अग्गपंडित की उपाधि दी गयी थी। यह ग्रंथ तीन भागों अथवा मालाओं में विभक्त है - पदमाला, धातुमाला तथा सुत्तमाला। अन्य ग्रंथ
१. धात्वत्थदीपनी - इसमें सद्दनीति की धातुमाला में वर्णित धातुओं का पद्यबद्ध संकलन है। इसके रचयिता बर्मी भिक्षु हिंगुवल जिनरतन कहे जाते हैं जिनके काल के बारे में पता नहीं है। पालि व्याकरण के अन्य ग्रंथ
पालि के इन व्याकरण ग्रंथों के अतिरिक्त कुछ फुटकर ग्रंथों की भी रचना हुई हैं। ये हैं - वच्चवाचक, गंधट्ठि, गन्धाभरण, विभत्त्यत्थप्पकरा, संवण्णनानयदीपनी,
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