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श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ जनवरी-मार्च २००६
धम्म चक्र प्रवर्तन सूत्र : मानवीय दुःख विमुक्ति का निदान पत्र
प्रो० अँगने लाल*
'धम्म चक्र प्रवर्तन सूत्र' चार पदों वाला सूत्र है। १.धम्म २. चक्र (चक्क) ३. प्रवर्तन (पवत्तन) एवं ४. सूत्र (सुत्त)। पूरे सूत्र को समझने के लिये चारों पदों का अर्थ और तात्पर्य समझना आवश्यक है।
धम्म : धम्म का तात्पर्य तथागत गौतम बुद्ध का सद्धम्म संदेश है। यह धम्म 'रिलीजन' या 'मजहब' से सर्वथा भिन्न है।' धम्म का किसी आत्मा-परमात्मा से कुछ लेना-देना नहीं और न किसी देवी-देवता अथवा कर्मकाण्ड से ही कोई सरोकार है।
बुरे कर्मों से बचे रहना, अच्छे कल्याणकारी कार्यों को करना और अपने मन और चित्त को निर्मल रखना यही धम्म है:
"सब्ब पापस्स अकरणं कुसलस्स उपसंपदा
सचित्त परियोदपनं एतान बुद्धानुसासनं''३ चक्क (चक्र) : चक्क का सीधा अर्थ चक्का या पहिया है। यह चक्का प्रगति-विकास का प्रतीक है। इसलिये मानव समाज के लिये हित सुखकारी है। इस चक्र का उस चक्र (सुदर्शन) से कोई सम्बन्ध नहीं है जो विष्णु या कृष्ण के हाथ में है। जिसका नाम तो 'सुदर्शन' है लेकिन वह किसी की हिंसा और किसी का उपकार करने वाला है। लेकिन धम्म चक्र से किसी की हिंसा नहीं होती, सभी का कल्याण ही होता है।
बैलगाड़ी के पहिये में अथवा किसी गाड़ी के पहिये में आरा-गज होते हैं जो चारों ओर के वृत्त को रोके रहते हैं। चक्के के बीचो-बीच केन्द्र में आरा-गजों को रोकने के लिये 'हब' होता है। इसी हब में धुर द्वारा पूरा चक्का घूमता है। साइकिल के चक्के में तीलियाँ (स्पोक्स) लगती हैं जो पहिये को ठीक रखती हैं। * पूर्व कुलपति, डा० राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय, फैजाबाद
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