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धम्म चक्र प्रवर्तन सूत्र : मानवीय दुःख विमुक्ति का निदान पत्र : ५९
८. महायान में तीन धर्म चक्र प्रवर्तन माने जाते हैं। पहला सारनाथ (उत्तर प्रदेश) में
दूसरा गृद्धकूट पर्वत पर (राजगृह, बिहार प्रदेश) और तीसरा धान्य कटक (अमरावती आन्ध्र प्रदेश) में।
९. महावग्ग पालि, (नव नालन्दा महाविहार संस्करण, १९५६), पृ०-१३. १०. महावग्ग पालि, पृ०-२३.
यहाँ 'ब्रह्मचर्य प्रकासयेत' पद यह दर्शाता है कि उस समय समाज में विचरण करने वाले संन्यासी परिव्राजकों में ब्रह्मचर्य पालन की कमी थी।
११. वही, १३.
भगवान बुद्ध का यह निर्देश और आदेश भी यह इंगित करता है कि उस समय के उपदेशक अनावश्यक और बेकार के अनर्गल उपदेश भी देते थे। तभी भगवान ने केवल मानवीय हित या सुख और कल्याणकारी उपदेश ही देने का आदेश दिया।
१२. प्रतीत्य समुत्पाद : (१) अविद्या, (२) संस्कार, (३) विज्ञान, (४) नामरूप,
(५) षडायतन, (६) स्पर्श, (७) वेदना, (८) तृष्णा (९) उपादान (१०) भव (११) जाति (जन्म) (१२) जरा मरण। इनमें से प्रत्येक पूर्व की कड़ी अगली कड़ी को जन्म देती है। पूर्व की कड़ी कारण .
और बाद की कड़ी फल है। १३. काय सुख और काय कलेश की चरम सीमा। १४. (१) दुःख आर्य सत्य (२) दुःख समुदय आर्य सत्य (३) दुःख निरोध आर्य
सत्य और (४) दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा आर्य सत्य। १५. अष्टांगिक मार्ग पिछले पृष्ठों में वर्णित है। १६. दस पारमितायें : (१) शील (२) दान (३) उपेक्षा (४) नैष्क्रम्य (५) वीर्य (६)
शान्ति (७) सत्य (८) अधिष्ठान (९) करुणा (१०) मैत्री । नैष्क्रम्य = सांसारिक काम भोगों का त्याग; वीर्य = सम्यक् प्रयत्न हेतु उत्साह; अधिष्ठान = दृढ़ निश्चय, (डा० बी०आर० अम्बेडकर भगवान बुद्ध और उनका धम्म चक्र, पृ० २०१)
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