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श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ जनवरी-मार्च २००६
महावीर कालीन मत-मतान्तर : पुनर्निरीक्षण
___ डॉ० विभा उपाध्याय*
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आजकल के बाबा, वैरागी, स्वामी आदि पंथों की गणना की जाए, तो उनकी संख्या असंख्य होगी। किन्तु उनमें महत्त्वपूर्ण अथवा नाम लेने योग्य तो इने गिने ही मिलेंगे। इसी प्रकार छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, इस प्रकार के अनेक मत-मतान्तर विद्यमान थे। प्रारम्भिक बौद्ध साहित्य में इनकी संख्या ६२ (द्वासट्ठि दिट्ठि गतानि) अथवा ६३ (यानि च तीणि यानि च सट्ठि०) बताई गई है, एवं
जैन धार्मिक साहित्य के अनुसार ऐसे सम्प्रदायों की संख्या ३६३ (इमाइ तिण्णि तेवट्ठाई) थी। तत्कालीन जगत् में इन सम्प्रदायों ने बौद्धिक और नैतिक उथलपुथल मचा रखी थी। आज इन पंथों की जानकारी शायद इसलिए नष्ट हो गई, कि छोटे-छोटे सम्प्रदाय, बड़े सम्प्रदायों में समाविष्ट हो गए अथवा अपनी कमजोरियों के कारण अधिक चल ही नहीं सके। फिर अधिकांशतः का लिखित इतिहास भी प्राप्त नहीं है।
इस लेख का उद्देश्य इन्हीं ६२ अथवा ३६३ पंथों, उनकी सूची, नाम आदि का विवरण प्रस्तुत करना है। उनके दर्शन पर विस्तार से लिखना एक लेख में सम्भव नहीं है, अत: इस लेख के माध्यम से मैं एक परिचयात्मक विवरण प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगी। यद्यपि इस प्रकार का प्रयास पहले भी विद्वानों के द्वारा किया जा चुका है, विशेषकर जिन विद्वानों ने बौद्ध धर्म और उसके इतिहास पर ग्रंथ लिखे। उदाहरणार्थ - 2500 Years of Buddhism by P.V. Bapat; Background to the rise of Buddhism, Studies in History of Buddhism by A.L. Basham; The History and Literature of Buddhism by T.W. Rhys Davids ya Śramaņa Tradition : Its History and Contribution to Indian Culture, Studies in the Origins of Buddhism by G.C. Pande आदि ऐसे अनेक ग्रंथ हैं। इन विद्वानों ने बौद्ध साहित्य और जैन साहित्य दोनों की जानकारियों के साथ-साथ छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के मत-मतान्तरों का विवरण दिया है। जैन धर्म और जैन साहित्य का इतिहास * एसो० प्रोफेसर, प्रा०३० एवं भा०सं० विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
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