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५८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६ से दायें अथवा घड़ी की सुई के विपरीत दाहिने से बायीं ओर को। यहां यह स्मरणीय है कि बुद्ध ने धम्म चक्र प्रवर्तन लोगों के दुःख बन्धनों को खोलने के लिये किया था। बांयी ओर से दाहिनी ओर बन्धन कसता है और अधिक मजबूत, सुदृढ़ होता है। दाहिनी और से बायीं ओर घुमाने पर दु:ख बन्धन ढीला होता है, शिथिल होता है और टूटता है। इसलिये भगवान बुद्ध ने चक्र को दाहिने से बायीं ओर घुमाया था जिसे 'एन्टी क्लाकवाइज' कहते हैं।
वस्तुत: महामानव बुद्ध का धम्म चक्र संसार के दु:खी प्राणियों को दुःख मुक्त करने, शोकाकुल लोगों को शोक मुक्त करने और भयभीत लोगों को निर्भय करने के लिये ही था:
“दुक्कप्पत्ता च निढुक्खा, भयप्पत्ता च निब्भया।
सोकप्पत्ता च निस्सोका होन्तु सब्बेपि पाणिनो। सन्दर्भ : १. डा० बी०आर०अम्बेडकर, बुद्ध एण्ड हिज धम्म, (हिन्दी अनुवाद) पु० २४९
२५६. २. वही पु० १९३-२०१. ३. धम्मपद, १४/५. ४. दीघनिकाय, राहुल सांकृत्यायन, भारतीय बौद्ध शिक्षा परिषद्, लखनऊ, १९७९
ई०, पृ०-९९। ५. दीघनिकाय, (हिन्दी अनुवाद) राहुल सांकृत्यायन बुद्ध विहार, लखनऊ, १९६९
ई०, पृ०-९५ के अनुसार (१) विपस्सी (२) सिखी (३) वेस्सभू (४) ककुसन्ध
(५) कोणागम (६) कस्सप और (७) गौतम बुद्ध। ६. आचार्य नरेन्द्र देव, बौद्ध धर्म दर्शन, पृ०-१०५ (पटना, १९५६)। ७. वही, भारतीय तथा विदेशों में बौद्ध धर्म प्रसारण, (डा० श्रीमती यमुना लाल,
दिल्ली, १९९३), पृ०-२१, (१) तण्हंकर (२) मेधकर (३) शरणंकर (४) दीपकर (५) कोण्डन्य (६) मंगल (७) सुमन (८) रेवत (९) शोभित (१०) असीम दस्सी (११) पद्म (१२) नारद (१३) पदोत्तर (१४) सुमेध (१५) सुबोध (१६) प्रियदर्शी (१७) आर्यदर्शी (१८) सिद्धार्थ (१९) तिष्य (२०) फुस्स (२१) विपश्यी (२२) सिखि (२३) वेस्सभू (२४) ककुसन्ध (२५) कोणागम (२६) कस्सप (२७) गौतम बुद्ध।
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