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पद्म पुराण में राम का कथानक और उसका सांस्कृतिक पक्ष
मनुष्य मन, वचन, काय से जो कर्म करते हैं वे छूटते नहीं हैं और प्राणियों को अवश्य ही फल देते हैं। इस प्रकार कर्मों के पुण्य-पाप रूप फल का विचार कर अपनी बुद्धि धर्म में धारण करो और अपने आपको दुःखों से बचाओ।
पुण्येन लभ्यते सौख्यमपुण्येन च दुःखिताः । कर्मणामुचितं लोकः सर्वम् फलमुपाश्नुते ॥ ९
पुण्य से सुख प्राप्त होता है और पाप से दुःख मिलता है। प्राणी अपने कर्मों के अनुरूप ही सब प्रकार का फल प्राप्त करते हैं।
“सर्वासामेव शुद्धीनां मनः शुद्धि प्रशस्यते १० अर्थात् सब शुद्धियों में मन की शुद्धि प्रशंसनीय है ।
कहा जा सकता है कि पुराण की उपयोगिता प्रत्यक्ष रूप से आम जनता के लिए तो नहीं हो सकती किन्तु एक दार्शनिक, इतिहासवेत्ता, शोधार्थी के लिए पुराण महत्त्वपूर्ण एवं अमूल्य स्रोत हैं । पुराण की भारतीय संस्कृति के रक्षण एवं संवर्द्धन में महनीय भूमिका सम्भव है।
संदर्भ :
१.
२.
पद्म पुराण, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, पर्व २०, श्लोक २४१
पद्म पुराण, पर्व ५, श्लोक २, ३
३.
पद्म पुराण, पर्व २४, श्लोक ५
४. पद्म पुराण, पर्व २, श्लोक २९
पद्म पुराण, पर्व ५, श्लोक ३४२
५.
६. पद्म पुराण, पर्व ६, श्लोक २८६
७. पद्म पुराण, पर्व श्लोक २९७
८.
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पद्म पुराण, पर्व १३, श्लोक ९७, ९८
९. पद्म पुराण, पर्व ३१, श्लोक ७६
१०. पद्म पुराण, पर्व ३१, श्लोक २३३
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