________________
पद्म पुराण में राम का कथानक और उसका सांस्कृतिक पक्ष : ५१
हैं। तब मारीच स्वर्णमृग का रूप धारण कर राम को दूर ले जाता है। इतने में रावण राम का रूप धारण करके सीता से कहता है कि मैंने स्वर्णभूत महल भेजा है और उनको पालकी पर चढ़ने की आज्ञा देता है । यह पालकी वास्तव में पुष्पक विमान है, जो सीता को लंका ले जाता है। रावण सीता का स्पर्श नहीं करता है। क्योंकि पतिव्रता के स्पर्श से उसकी आकाशगामिनी विद्या नष्ट हो जाती ।
दशरथ को स्वप्न द्वारा मालूम हुआ कि रावण ने सीता का हरण किया है और वह राम के पास यह समाचार भेजते हैं। दूसरी ओर राम के पास सुग्रीव और हनुमान बालि के विरुद्ध सहायता माँगने के लिए पहुँचते हैं। हनुमान लंका जाते हैं और सीता को सान्त्वना देकर लौटते हैं। यहाँ लंकादहन का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसके बाद लक्ष्मण द्वारा बालि का वध किया जाता है और सुग्रीव अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त करता है। अब वानरों की सेना राम की सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान करती है । अन्त में लक्ष्मण चक्र से रावण का शिर काटते हैं। इसके बाद लक्ष्मण दिग्विजय करके वासुदेव के रूप में प्रकट होते हैं। सीता के आठ पुत्र होते हैं। इसमें सीता त्याग का उल्लेख नहीं मिलता है। लक्ष्मण एक असाध्य रोग से मरकर रावण वध के कारण नरक जाते हैं। राम, लक्ष्मण के पुत्र पृथ्वी सुन्दर को राज्य पद पर और सीता के पुत्र अजितंजय को युवराज पद पर अभिषिक्त करके दीक्षा लेते हैं और मुक्ति पाते हैं। सीता भी अनेक रानियों के साथ दीक्षा लेती है और अच्युत स्वर्ण में जाती है। उत्तरपुराण की यह रामकथा श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित नहीं है । इस प्रकार पद्म पुराण के कथानक की विभिन्नता और उसके पीछे रही हुई कारणता को प्रकाश में लाना शोध का विषय है।
पद्म पुराण में राम की कथा के साथ ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष भी अंकित हैं जो इस पुराण की वर्तमान समय में उपयोगिता सिद्ध करते हैं। यथा
रविषेणाचार्य जगत्-प्रसिद्ध चार महावंश का वर्णन करते हुए इतिहासवेत्ताओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण सूचना प्रेषित करते हैं -
'इक्ष्वाकुः प्रथमस्तेषामुन्नतो लोकभूषणः ऋषिवंशो द्वितीयस्तु शशाङ्ककरनिर्मलः । विद्याभृतां तृतीयस्तु वंशोऽत्यन्तमनोहरः, हरिवंशो जगत्ख्यातश्चतुर्थः परिकीर्तितः ॥ २
इस लोक में आभूषणस्वरूप पहला इक्ष्वाकु वंश है, जो दूसरा ऋषिवंश अथवा चन्द्रवंश है जो चन्द्रमा की किरणों के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
अत्यन्त उत्कृष्ट है। समान निर्मल है।
www.jainelibrary.org