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भारतीय व्याकरण शास्त्र की परम्परा : ४३
सद्दवुति, कारकपुष्फमञ्जरी, सुधीरमुखमंडन तथा नयलक्खणविभावनी। अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, सिंहली, बर्मी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में भी पालि व्याकरण सम्बन्धी ग्रंथ रचे गये।
इस प्रकार संस्कृत व्याकरणों से शुरू होकर प्राकृत और पालि भाषाओं के लिए अनेक व्याकरणों की रचना हुई। संदर्भ : १. ब्रह्मामैशान्मैन्द्रश्चं प्राजापत्यं बृहस्पतिम् ।
त्वाष्ट्रमापिशलेश्चेति पाणिनीयमथाष्टकम् ।। २. इन्द्रश्चान्द्रः काशकृतस्नापिशली शाकटायनः।
पाणिन्यमरजैनेन्द्रा: जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः।। ३. संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास, भाग १, अध्याय ३। ४. वही भाग २, अध्याय २०.१। ५. वही, अध्याय २३) ६. वही, अध्याय २४। ७. वही, अध्याय २५। ८. वही, अध्याय २६। ९. काव्य मौमांसा, पृष्ठ-५ ‘उक्तानुक्तदुरुक्तचिन्ताकरत्वं वार्तिकत्वम्' १०. सूत्रार्थो वर्जते स यत्र पदैः सूत्रानुसारिभिः।
स्वपदानि च वय॑न्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः।। Quoted from Abhayankar K.V's- Dictionary of Sanskrit
Grammar, p 273. ११. पदमञ्जरी, पृष्ठ ४, ‘सूत्रार्थप्रधानो ग्रन्थः वृत्ति:' 12. Shastri Kalicharana - Bengal's cant. to Sanskrit Grammar
vol-I, pp 15-16. १३. क. संपादक - क्षितीशचन्द्र चटर्जी, ख. संपादक - बेचरदास जीवदास दोशी,
जोधपुर। १४. सं०व्या० शा० का इ०, भाग १, पृ० ५७२-७४! १५. भारतीय ज्ञानपीठ, महावृत्ति सहित, काशी। १६. प्रेमी नाथूराम - भूमिका - जै०व्या० पृ. २०। १७. संपादक- शम्भूनाथ त्रिपाठी (अमोघावृत्ति सहित) भारतीय ज्ञानपीठ।
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