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४८ : श्रमण, वर्ष ५७, अंक १/जनवरी-मार्च २००६
अपना पूर्व स्वीकृत वर माँगकर भरत के लिए राज्य माँगती है। राजा दशरथ असमंजस में पड़ जाते हैं। वे सोचते हैं कि यह मर्यादा नहीं है कि समर्थ बड़े पुत्र को छोड़कर छोटे पुत्र को राज्यलक्ष्मी दी जाये। अत: वे राम के समक्ष अपनी इस दुरवस्था को प्रकट करते हैं। राम दृढ़ता के साथ कहते हैं कि आप भरत को राज्य देकर अपने सत्यवचन की रक्षा कीजिए, मेरी चिन्ता छोड़िए। पिता के समीप से उठकर अपनी माता के पास जाते हैं और उसे समझाकर तथा सान्त्वना देकर वन को जाने के लिए उद्यत होते हैं। सीता और लक्ष्मण उनके साथ हो जाते हैं।
वन में राम-लक्ष्मण अनेक युद्ध करते हैं - कहीं वज्रकर्ण को सिंहोदर के चन्द्र से बचाते हैं तो कहीं बालखिल्य को म्लेच्छ राजा के कारागृह से उन्मुक्त करते हैं, और कभी नर्तकी का रूप धरकर भरत के विरोध में खड़े हुए राजा अतिवीर्य का मान-मर्दन करते हैं। इसी बीच में लक्ष्मण जगह-जगह राजकन्याओं के साथ विवाह करते हैं। दण्डक वन में वास करते हैं, मुनियों को आहार-दान देते हैं तथा जटायु से सम्पर्क प्राप्त करते हैं।
रावण की बहन चन्द्रनखा तथा खरदूषण का पुत्र शम्बूक सूर्यहास खड्ग की सिद्धि के लिए बारह वर्ष तक बांसों के विस्तृत स्तम्भ में बैठकर तपस्या करता है। उसकी साधना स्वरूप वह खड्ग प्रकट होता है। लक्ष्मण संयोगवश वहाँ पहुँचते हैं और शम्बूक के पहले ही उस खड्ग को हाथ में लेकर उसकी परीक्षा करने के लिए उसी बाँस के स्तम्भ पर चलाते हैं जिसमें शम्बूक बैठा था, फलतः शम्बूक मर जाता है। चन्द्रनखा उसकी मृत्यू देखकर विलाप करने लगती है। खरदूषण लक्ष्मण के साथ युद्ध करता है, खरदूषण के आह्वान पर रावण भी सहायता के लिए आता है। बीच में रावण सीता को देख मोहित होता है और उसे अपहरण करने का उपाय सोचता है। वह विद्याबल से जान लेता है कि लक्ष्मण ने राम को सहायतार्थ बुलाने के लिए सिंहनाद का संकेत बनाया है। अतः रावण प्रपंचपूर्ण सिंहनाद से राम को लक्ष्मण के पास भेज देता है और सीता को अकेली देख हर ले जाता है। ,
सीता हरण के बाद राम बहुत दुःखी होते हैं। मार्ग में उनकी सुग्रीव के साथ मित्रता होती है। एक साहसगति नाम का विद्याधर सुग्रीव का मायारूप बनाकर सग्रीव की पत्नी तथा राज्य पर अधिकार करना चाहता है। राम उसे मारते हैं, जिससे सुग्रीव अपनी पत्नी तथा राज्य पाकर राम भक्त हो जाता है।
सुग्रीव की आज्ञा से विद्याधर सीता की खोज करते हैं। रत्नजटी विद्याधर बताता है कि सीता का हरण रावण ने किया है। उस समय रावण बड़ा बलवान
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