________________
श्रमण, वर्ष ५७, अंक १ जनवरी-मार्च २००६
पद्म पुराण में राम का कथानक और उसका सांस्कृतिक पक्ष
डॉ० श्वेताजैन*
जैन इतिहास और संस्कृति आगमों से निःसृत होकर पुराण साहित्य में सागर के समान विस्तृत हो गई है। इनमें कथा की रोचकता के साथ गम्भीर भावों को सुगम बनाया गया है। अतः जैन पुराण साहित्य कथा साहित्य या कथानुयोग का एक प्रमुख अंग है। ये पुराण वस्तुतः श्रमण संस्कृति के विश्वकोश हैं, जिनमें विभिन्न कथाओं के माध्यम से धार्मिक जीवन के विविध पक्षों के साथ ही सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और कलापरक विषयों की विस्तारपूर्वक चर्चा है। श्वेताम्बर परम्परा में ऐसे ग्रन्थों को चरित या चरित्र तथा दिगम्बर परम्परा में पुराण कहा गया है।
Jain Education International
पाँचवीं शती ई० से १०वीं शती ई० के मध्य विभिन्न प्रारम्भिक जैन पुराणों की रचना की गई, जिनमें प्राकृत पउमचरियं, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, महापुराण विशेष उल्लेखनीय हैं। इन पौराणिक महाकाव्यों की कथावस्तु जैन धर्म के शलाकापुरुष तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि ६३ महापुरुषों के जीवन चरित को लेकर निबद्ध की गई है। भारतीय साहित्य के सदृश जैनपौराणिक महाकाव्य भी राम और कृष्ण जैसे राष्ट्रीय चरित्रों को लेकर प्रारम्भ होते हैं। भगवान राम पर पद्मपुराण और कृष्ण पर हरिवंश पुराण रचा गया है। सर्वप्रथम विक्रम संवत् ५३० में विमलसूरि द्वारा 'पउमचरियं' नामक ग्रन्थ, तदनन्तर रविषेण द्वारा वि०सं० ७३४ में संस्कृत में 'पद्म पुराण' लिखा गया। इस पुराण में आठवें बलदेव पद्म अर्थात् राम, आठवें वासुदेव लक्ष्मण, आठवें प्रतिवासुदेव रावण तथा उनके परिवारों और सम्बद्ध वंशों का चरित वर्णन है । यह पुराण १२३ पदों में विभाजित एक विशालकाय ग्रन्थ है । यह पुराण जैन संस्कृति एवं परम्परा की प्रस्तुति से संपृक्त है। इसमें सभी व्यक्तित्व जिनदेव के उपासक हैं। तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव इन श्लाघनीय पुरुषों के उत्पत्ति, समय आदि जैन मान्यताओं का उल्लेख भी इस पुराण में दृष्टिगत होता है। यहाँ राम को ८वें
अतिथि अध्यापक, संस्कृत विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org