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तत्त्वार्थसूत्र का पूरक ग्रन्थ : जैन सिद्धान्त-दीपिका : २९
कम्मं खवेइ, उच्चागोयं निबंधइ, इत्यादि (उत्तराध्ययनसूत्र (२५. १०)। भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि हे भगवन्! वन्दना करने से क्या लाभ होता है? भगवान ने उत्तर दिया- गौतम! वन्दना करने से नीचगोत्र कर्म का क्षय और उच्चगोत्र कर्म का बन्ध होता है। यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि शुभयोग के समय अशुभयोग का निरोध होता है। अत: अपेक्षा से संवरधर्म भी पाया जाता है।
. ४. मोक्षमार्ग का प्रतिपादन करते हुए ‘जैन सिद्धान्त-दीपिका' में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र के साथ सम्यक् तप को भी पृथक से स्थान दिया गया है, यथा- सम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्र तपांसि मोक्षमार्गः (६. १) तत्त्वार्थसूत्र में उमास्वाति द्वारा तप का चारित्र में ही समावेश कर लिया गया है। किन्तु चारित्र से तप का पृथक् कथन आगमों में भी प्राप्त होता है, यथा
नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा।।
यस मग्गुत्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसीहिं।। (उत्तरा. २८. २)
जैनागमों में तप एवं चारित्र के भेद अलग से प्राप्त होते हैं तथा दोनों का अपना महत्त्व है। चारित्र जहाँ संयम या संवर की प्रधानता रखता है वहाँ तप में निर्जरा की प्रधानता है। अत: 'तप' को मोक्षमार्ग में पृथक से स्थान दिया जाना उचित ही है।
५. समस्त कर्मों के क्षयरूप मोक्ष का लक्षण तो जैनदर्शन में प्रसिद्ध है। तत्त्वार्थसूत्र में कहा गया है- कृत्स्न कर्मक्षयो मोक्षः। (तत्त्वार्थसूत्र १०.१)। जैन सिद्धान्त-दीपिका में कर्मक्षय के साथ आत्मा का स्वरूप में अवस्थान मोक्ष कहा गया है, यथा- ‘कृत्स्न कर्म क्षयादात्मन: स्वरूपावस्थानं मोक्षः। (५. १९)। इससे यह भी ध्वनित होता है कि समस्त कर्मों का क्षय होने के पश्चात् आत्मा की सत्ता बनी रहती है तथा वह अपने ज्ञान-दर्शन स्वरूप में अवस्थित रहती है। आचार्य श्री ने सूत्र की वृत्ति में यह भी स्पष्ट किया है कि समस्त कर्मों का क्षय होने के पश्चात् पुनः कर्मों का बन्ध नहीं होता है।
६. षड्द्रव्यों में जीव द्रव्य का निरूपण करते हुए आचार्य श्री तुलसी ने तृतीय प्रकाश के पञ्चम सूत्र की वृत्ति में पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक
और वनस्पतिकायिक जीवों में चेतना की सिद्धि के लिए हेतु प्रस्तुत किए हैं, जो उल्लेखनीय हैं। पृथ्वी में चेतना सिद्ध करते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार मनुष्य और तिर्यन्च जीवों के घावों में सजातीय मासांकुर होते हैं, वैसे ही पृथ्वी
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