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तत्त्वार्थसूत्र का पूरक ग्रन्थ : जैन सिद्धान्त-दीपिका : ३१ (v) जीव- उपयोग लक्षणो जीवः। उपयोग लक्षण वाला जीव होता है। चेतना के व्यापार को उपयोग कहते हैं।
___ (vi) काल- काल: समयादिः। समय, आवलिका, मुहूर्त आदि को काल कहते हैं। यह काल वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व, अपरत्व आदि के द्वारा जाना जाता है।
तत्त्वार्थसूत्र की सरणि का उपर्युक्त लक्षणों में पूरा उपयोग किया गया है, किन्तु जैन सिद्धान्त-दीपिका में परमाणु आदि के लक्षण भी दिए गए हैं, यथा
परमाणु- अविभाज्य: परमाणुः। (१.१७)- अविभाज्य पुद्गल ही परमाणु है।
स्कन्थ- तदेकी भावः स्कन्धः। (१. १८)- परमाणुओं का एकीभाव स्कन्ध है।
देश- बुद्धिकल्पितो वस्त्वंशो देशः। (१. ३०)- वस्तु का बुद्धि कल्पित अंश देश है।
प्रदेश- निरंश: प्रदेशः। (१. ३१)- वस्तु के निरंश अंश को प्रदेश कहते हैं।
८. जैन सिद्धान्त-दीपिका में सभी द्रव्यों के सामान्य और विशेष गुणों को योजित किया गया है। सामान्य गुण हैं- (१) अस्तित्व (२) वस्तुत्व (३) द्रव्यत्व (४) प्रमेयत्व (५) प्रदेशत्व (६) अगुरूलघुत्व। विशेष गुण १६ प्रतिपादित हैं- (१) गतिहेतुत्व (२) स्थितिहेतुत्व (३) अवगाह हेतुत्व (४) वर्तना हेतुत्व (५) स्पर्श (६) रस (७) गन्ध (८) वर्ण (९) ज्ञान (१०) दर्शन (११) सुख (१२) वीर्य (१३) चेतनत्व (१४) अचेतनत्व (१५) मूर्तत्व (१६) अमूर्तत्व। इनमें से जीव और पुद्गल में ६-६ गुण तथा अन्य द्रव्यों में तीन-तीन गुण पाए जाते हैं, यथा
धर्मद्रव्य- गतिहेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = ३ गुण अधर्मद्रव्य- स्थितिहेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = ३ गुण आकाशद्रव्य- अवगाहहेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = ३ गुण काल- वर्तना हेतुत्व, अचेतनत्व और अमूर्तत्व = ३ गुण पुद्गल- स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, अचेतनत्व और मूर्तत्व = ६ गुण जीव- ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, चेतनत्व और अमूर्तत्व = ६ गुण
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