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मुल्ला ने आकर्षण मंत्रों का कई बार प्रयोग किया किन्तु वह टोपी नीचे नहीं आई। मुल्ला हताश हो गया।
उसी क्षण सुलतान ने आचार्य से कहा – 'हे जिनप्रभसूरि ! मुल्ला तो निराश हो गया है, आपमें कोई शक्ति हो तो टोपी को वापस बुलाओ।'
तत्काल ही सूरिजी ने रजोहरण को मंत्रित कर आकाश की ओर उछाला। वह रजोहरण आकाश में जाकर टोपी पर चोट करते हुए उसे नीचे गिरा दिया। यह चमत्कार देख कर सुरत्राण आश्चर्यचकित रह गया। घट रहित जल का आकाश में स्थिर रहना.
एक दिन पानी लाने वाली पणिहारियाँ जल से भरे हुए घड़े सिर पर रखकर सुलतान के आगे चल रही थीं। उसी समय एक मुल्ला ने मंत्र बल से उन घड़ों को आकाश में निराधार ही स्थिर कर दिया। पणिहारियाँ आगे जाकर सिर पर घड़े को नहीं देखती हैं और आकाश में उस घड़े को देखती हैं। वे विस्मय से भर जाती हैं। सुलतान इस कृत्य को देखकर अत्यन्त चमत्कृत होता है। सुलतान आचार्य के समक्ष इस चमत्कार की प्रशंसा करता है। तब जिनप्रभसूरि ने कहा – 'यदि केवल जल ही आकाश में स्थिर रहे, तभी यह प्रशंसनीय कला है।'
सुलतान ने उसी समय मुल्ला की ओर इशारा किया। मुल्ला इस कला को नहीं जानता था, अत: वह चुपचाप खड़ा रहा।
उसी समय जिनप्रभसूरि ने आकाश की ओर कंकर फेंका। उस कंकर के लगने से घडा फूट गया किन्तु जल निराधार ही स्थिर रहा। आचार्य की यह चमत्कार कला देखकर मोहम्मद तुगलक अत्यन्त प्रसन्न हुआ। ३. क्या प्रतिमा भी बोलती है?
किसी समय मोहम्मद तुगलक की सेना ने कान्हड़ गाँव (कन्यानयन, कन्नाणा) को तहस-नहस कर डाला। वहाँ के जैन मन्दिर को भी नष्ट कर डाला और उस मन्दिर में विराजमान भगवान् महावीर की प्रतिमा को साथ में
शुभशीलशतक
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