________________
__ अर्थात् - भावपूर्वक सुविहित श्रमणों को नमस्कार और उनको पहले दान देकर जो पारणक करता है, भोजन करता है, वही सफल भोजन कहलाता है। ८०. दान का प्रभाव.
कुरुक्षेत्र में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहता था। तीनों का परस्पर घनिष्ठ प्रेम था। एक समय तीनों ही सत्तु का भोजन करने के लिए बैठ गये, उसी समय अपने घर में आये हुए साधुजनों को अपने-अपने हिस्से का सत्तु उन्होंने प्रदान किया। उसी समय उस अन्न-दान के प्रभाव से देवताओं ने उसके घर में सोना-मोहरों की वृष्टि की और उसके दान की प्रसंशा की। इसी अन्न दान के पुण्य प्रकर्ष से वे भविष्य में मुक्ति प्राप्त करेंगे। ८१. क्षमा-शील युधिष्ठिर.
महाराजा युधिष्ठिर जुए के खेल में अपना सब-कुछ गंवा कर भीम आदि भाइयों के साथ जंगल की ओर चले गये। किसी वन में संध्या के समय झाड़ के नीचे उन लोगों ने निवास किया। सायंकालीन सामायिक ग्रहण कर और प्रतिक्रमण कृत्य पूर्ण कर नमस्कार मंत्र का स्मरण करते हुए सोने की तैयारी करने लगे।
उसी समय महाबली भीम ने कहा - 'भयंकर जंगलों में अनेक प्रकार के उपसर्ग/त्रासजनक पीडाएँ होती रहती हैं, रात्रि में तो विशेष रूप से होती है, इसलिए पहले पहर में मैं जाग्रत रह कर पहरा दूंगा।' सब सो गये। भीम जाग्रत रह कर पहरा देने लगा, उसी समय कलि नाम का राक्षस वहाँ आया। भीम क्षुब्ध हो, इस प्रकार का उसने वातावरण सर्जित किया। भीम के क्षुब्ध न होने पर दोनों आपस में युद्ध करने लगे। दोनों बलवान थे, इसलिए कोई भी पराजित नहीं हुआ। दोनों ही खिन्न होकर अपनी-अपनी थकान मिटाने लगे। अपना पहला पहर होने पर भीम सो गया।
दूसरे पहर में अर्जुन जाग्रत रहता हुआ पहरा देने लगा। कलि राक्षस ने भीम के समान अर्जुन से भी मल्ल-युद्ध किया। हार-जीत का निर्णय न हो
शुभशीलशतक
114
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org