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को देखा । सोचने लगा- 'क्या यह विद्याधरी है ? देवांगना है? अथवा पाताल कन्या है ? ऐसा गजब का सौन्दर्य एवं ऐश्वर्य तो मैंने कभी नहीं देखा । यदि यह मेरी प्राणप्रिया बन जाए तो मेरा जन्म सफल हो जाए ।' वहाँ नाटकादि देखकर राजा वहाँ से चला गया और प्रच्छन्न रूप से उसको अपनी वल्लभा बनाने को दृष्टि में रखकर वहाँ बारम्बार आने-जाने लगा ।
एक दिन उसने उसकी सेविका विद्याधरी से पूछा स्वामिनी मुझे वर रूप में स्वीकार करेगी ?
सेविका ने उत्तर दिया- मेरी स्वामिनी की यह इच्छा है कि उसका पति विद्याधर ही हो ।
राजा ने सोचा - यदि इसके साथ एक बार भी संगम हो जाए तो मेरा जीवन सफल हो जाए ।
एक दिन राजा वहाँ गया। उसकी सेविका वहाँ नजर नहीं आई । दूसरी सेविका से पूछने पर मालूम हुआ कि वह किसी काम से गई हुई है, ऐसा कहकर वह भी चल दी। उसी समय तिलोत्तमा ने आवाज लगाई - यहाँ कौन है ? मेरी पादुका लेकर आओ 1
उसी समय राजा उसके खड़ाऊ लेकर वहाँ गया और चरणों के पास रख दी।
क्या तुम्हारी
तिलोत्तमा ने पूछा - 'तुम कौन हो ?' उसने कहा मैं आपको देखनी की इच्छा से आपकी सेविका के द्वारा यहाँ लाया गया हूँ ।
तिलोत्तमा ने कहा 'अच्छा किया।' दूसरे दिन तिलोत्तमा ने फिर कहा- जो कोई भी पहरे पर हो, वह बैर और बबूल के पत्ते लेकर आए और मेरे घाव पर पट्टी बांध दे ।
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राजा ने वही किया। एक दिन राजा ने तिलोत्तमा से कहा - मैं तुम्हारे साथ संगम करना चाहता हूँ ।
शुभशीलशतक
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