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राजा ने कहा कारण है?
हरपाल ने कहा चिन्तातुर मनुष्य धर्मध्यान में परायण होते हैं । आप चिन्ताशील हैं। आज आप मुझे काका कह रहे हैं अन्यथा आप नाम भी ग्रहण नहीं करते हैं अर्थात् बुलाते भी नहीं हैं ।
काका! आजकल आप आते ही नहीं हो, क्या
हो जाऊँ ।
राजा ने हंसते हुए कहा
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अब आप ऐसा करिये कि मैं चिन्तामुक्त
हरपाल ने कहा - हे देव! श्रेष्ठ लोहे की बनी हुई आपकी जो छुरी है, उसकी मूठ मुझे प्रदान कीजिए। राजा ने मूठ दे दी ।
आठ दिन की मोहलत देकर हरपाल अपने घर आ गया। हरपाल ने उस छुरी का शक्कर का ऐसा फलक बनवाया कि वह चन्द्रहास लोह का भ्रम पैदा करता था । वह छुरी राजा के धारण योग्य हो गई उसको प्रतिहार को दे करके सोने की बनवाई । वह छुरी मन्त्री शान्तु मेहता के हाथ में देकर बुद्धिमत्तापूर्वक उसका स्वरूप राजा को बतला दिया।
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दूसरे दिन राजसभा में सिद्धि और बुद्धि नामक दोनों योगिनियाँ आईं। उस समय मन्त्री ने कहा 'हे राजन् ! इन दोनों को यहाँ आये हुए बहुत समय हो गया है। आप अपनी कोई कला इनको दिखालाइये और इन दोनों की विशेष कला को देखकर इनको विदा करिये।' अन्तिम वाक्य मन्त्री कुछ रोष के साथ कहा था ।
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उसी समय राजा ने उन दोनों रउलाणियों ( योगिनियों) को पूछा कहिये ! आप मेरी कौनसी विशिष्ट कला जानना चाहती हैं? और आपके गुरु कौन हैं ?
उन योगिनियों ने उत्तर दिया- हमारे दोनों के गुरु अचलनाथ हैं ।
राजा ने कहा- हमारे भी वे ही
गुरु
शुभशीलशतक
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