Book Title: Shubhshil shatak
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 156
________________ एक दिन उसने अपने पिता/मंत्री से कहा - पिताजी आपके पास जो घोड़े हैं, उनको राजा की घोड़ियों के साथ गर्भाधान के लिए भिजवा दिया करें। मन्त्री को यह बात रुचिकर प्रतीत हुई और उसने राजा से परामर्श कर इस कार्य की स्वीकृति ले ली। मन्त्री के घोड़ों के द्वारा राजा की घोड़ियों ने अनेक किशोर घोड़े पैदा किये। राजाज्ञा प्राप्त कर मन्त्री उन किशोर घोड़ों को अपने यहाँ ले आया। एक दिन राजा ने पूछा - मन्त्रीवर! आप हमारे किशोर घोड़ों को अपने घर क्यों ले गये? मन्त्री ने कहा - मेरी पुत्री के कथनानुसार ही इन किशोर घोड़ों को मैं अपने यहाँ ले गया हूँ। ___ तब राजा ने मन्त्री की पुत्री को बुलाकर पूछा - हमारे किशोर घोड़ों को तुम अपने पिता के घर क्यों ले गई? . मन्त्री की पुत्री ने अवसर देखकर कहा - हे राजन् ! आपके राज्य में यही न्याय चलता है। जो पुत्र होता है, वह पिता का ही होता है, ये जितने भी किशोर घोड़े हैं, वे सभी मन्त्री के घोड़ों से पैदा हुए हैं। अतः उन सभी पर मन्त्री का ही अधिकार बनता है। इसलिए किशोर घोड़ों को हम ले गये। राजा ने विचार किया - इस मंत्रीपुत्री को बुद्धि का अजीर्ण हो रहा है, इसको शिक्षा देना आवश्यक है। अभी अवसर नहीं है अत: पहले इसके साथ विवाह कर लूँ और उसके पश्चात् उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करूँ जिससे वह अत्यन्त दुःखी हो जाए तथा अपने कथन पर पश्चात्ताप करने लगे। अर्थात् इसके कहने और बोलने की जिम्मेदारी इसी पर रहे। मन्त्री को अत्यन्त सम्मानित कर बड़े प्रपञ्च के साथ तिलोत्तमा के साथ उसने विवाह कर लिया। कुछ दिन बीतने पर राजा ने कहा - घमण्डिनी विदुषी कन्या ! तुम अपने को बहुत बुद्धिमति समझ रही हो, अतः मैं आदेश शुभशीलशतक 143 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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