Book Title: Shubhshil shatak
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 146
________________ अम्बड़ मंत्री द्वारा प्रस्तुत शृंगार-कोटि-शाटिका आदि भेंट को देखकर कुमारपाल राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और अम्बड़ (आम्रभट्ट) को राजपितामह विरुद से नवाजा, प्रदान किया। ९१. ऊदा का मंत्री उदयन. मरु-मण्डल (मारवाड़) का रहने वाला श्रीमालवंशीय ऊदा नाम का वणिक् वर्षाकाल में घी बेचने के लिए चला। किसी ग्राम के बीच में खेती की रक्षा करने वालों को पकड़ कर पूछा - 'तुम किसके सेवक हो?' उन्होंने कहा – 'अमुक के खेत की रखवाली करने वाले हैं।' ऊदा वणिक् ने कहा – 'मेरे क्षेत्र रक्षक कहाँ गये?' वहाँ से कुटुम्ब सहित ऊदा आगे गया। वहाँ वायटीय (वायड़ गच्छीय) जिन मन्दिर को देखकर वहाँ गया और विधि पूर्वक वन्दन किया। वहाँ उसको विधिपूर्वक वन्दन करते हुए देखकर छिम्पिका नामक श्राविका ने उससे पूछा - आप किसके मेहमान हो? ऊदा ने कहा - मैं परदेशी हूँ और आपका ही मेहमान हूँ। उसके उत्तर से वह अत्यन्त संतुष्ट हुई और उसे सुश्रावक समझ कर किसी के घर में अपना द्रव्य देकर ऊदा को सकुटुम्ब भोजन करवाया और रहने के लिए घास की झोपड़ी भी उसे प्रदान की। उस कुटीर में ऊदा सपरिवार रहा। सुश्रावक होने के कारण उस समय उसका व्यापार अच्छा चला। अपना निजी मकान बनाने के लिए उसने ईटें इकट्ठी की और खात मुहूर्त करते समय गड्ढे से अपार ऐश्वर्य प्राप्त हुआ। ऊदा ने उस धन में से बहुत धन देकर छिम्पिका बहन का सम्मान किया। ऊदा की लक्ष्मी प्रतिदिन प्रवर्धमान/ निरन्तर बढ़ती रही। फलतः लोगों की जिह्वा पर ऊदा के स्थान पर वह उदयन हो गया। कृतप्रयत्नानपि नैति कांचन, स्वयं शयानानपि सेवते परान्। द्वयेऽपि नास्ति द्वितयेऽपि नास्ति, श्रियःप्रचारो न विचारगोचरः॥ शुभशीलशतक 133 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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