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अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने जैन धर्म को स्वीकार कर सम्यक्त्वधारी श्रावक बना। शत्रुञ्जय तीर्थ पर भगवान् ऋषभदेव की स्तुति करते हुए 'वह महिना धन्य है, वह दिन धन्य है और वह पक्ष धन्य है' भाव पूजा में संलग्न हुआ और देवताओं के द्वारा भी चलायमान नहीं हुआ ।
३८.
राम नाम से पत्थर तैरते हैं.
एक दिन फिरोज सुरत्राण ने मुकुन्द पण्डित से कहा- मैं महान् हूँ या राम महान् है?
मुकुन्द पण्डित ने कहा पत्थर मँगवाइये, जल में डालिये, आपको उत्तर प्राप्त हो जायेगा। परीक्षण के लिए सुरत्राण ने जल में पत्थर डाला। वह पत्थर जल के तल भाग में चला गया ।
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सुरत्राण ने कहा - क्या कारण है? तुम भय मत करो ! सच बताओ ।
मुकुन्द पण्डित - राजन् ! राम के अनन्य भक्त हनुमान् आदि ने राम का नाम लेकर जल में पत्थर/शिलाएँ फेंकी, वे शिलाएँ जल में तैरने लगी और ये पत्थर आपने फेंका, जो डूब गया। कहा भी है
ये मज्जन्ति निमज्जयन्ति च परांस्ते प्रस्तरा दुस्तरे, वार्द्ध वीर( ? ) तरन्ति वानरभटान् संतारयन्तेऽपि च । नैते ग्रावगुणा न वारिधिगुणा नो वानराणां गुणाः, श्रीमद्दाशरथेः प्रतापमहिमा सोऽयं समुज्जृम्भते ॥
अर्थात् - समुद्र में विशाल पत्थर फेंकने पर कई पत्थर समुद्र के तल में चले जाते हैं, कई उसके ऊपर तैरते रहते हैं । वानर सुभट उसी समुद्र को पार कर लेते है, दूसरों को भी पार करवा देते हैं। यहाँ न पत्थर में वह शक्ति है और न समुद्र में वह सामर्थ्य है तथा न वानर ही सक्षम हैं। वस्तुतः दाशरथी पुत्र श्रीराम के नाम का प्रताप है जो पत्थर भी तैर जाते हैं 1
३९.
समयोचित्त बुद्धि चातुर्य.
एक दिन एक बकरे ने अपनी माँ बकरी से कहा - हे माँ! दिवाली के दिन मेरे दोनों सींगों को सजा देना ।
शुभशीलशतक
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