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५१. बिना विचारे कार्य करना.
वृद्धपुर नगर में मुकुन्द नाम का ब्राह्मण रहता था। उसके कृष्ण नाम का पुत्र था। एक दिन मुकुन्द ने देखा कि एक सूअर अपनी गुफा में जाकर अपनी दाढ़ों से भूमि को खोदता था। उस खोदी हुई रेत में उसे सिक्का नजर आया। मुकुन्द ने उसे ले लिया। दूसरे दिन भी उसे सिक्का मिला। इस प्रकार लगातार ७ दिनों तक उसे मुद्राएँ प्राप्त होती रहीं। प्रतिदिन का यह दृश्य उसका पुत्र कृष्ण भी देखता था।
___ किसी दिन किसी काम से कृष्ण के पिता मुकुन्द के गाँव चले जाने पर कृष्ण ने सोचा - 'सूअर प्रतिदिन भूमि को खोदता है, उसमें से मुद्राएँ प्राप्त होती है, तो निश्चित ही यहाँ कुछ धन होना चाहिए। अतः उस जमीन को खोदने पर मुझे बहुत धन प्राप्त होगा, तो अपने इस टूटे-फुटे झोपडे के स्थान पर नया आरामदायक मकान बनवा लूँगा।' ऐसा सोचकर उसने सूअर के उस स्थान को खोद डाला। सूअर ने झपटा मारा और उसने उस सूअर की हत्या कर दी। गुफा को बहुत ढूंढने पर भी उसे कुछ नहीं मिला।
कृष्ण जिस समय यह अकरणीय कार्य कर रहा था, उसी समय उसका पिता मुकुन्द वहाँ आ गया और पूछा - तुम क्या कर रहे हो?
पुत्र ने कहा - धन के लिए प्रयत्न कर रहा हूँ।
पिता ने कहा - मूर्ख! तुमने व्यर्थ ही इस सूअर की हत्या कर दी। सुकरों के रहने के अनेक स्थान/गुफाएँ होती हैं। कौन जानता है कि किस गुफा में वह रहता है, किस गुफा से वह निकलता है? तुमने व्यर्थ ही उसको मारकर आते हुए धन पर लात मार दी। माया मिली न राम! इस अकृत्य से वह पुत्र दुःखी हुआ।
पिता बोला - जो होना होता है, वही होता है। कहा है:यस्य यादृग्स्वभावः स्यात्, जायते सोऽन्यथा नहि। वक्रं पुच्छं पुनः केन, सरलीक्रियते क्वचित्?
शुभशीलशतक
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