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राजा ने कहा - सरोवर में स्नान करने से मेरा कुष्ठ समाप्त हो गया, अतः यह निश्चित है कि वहाँ कोई न कोई देव का निवास है।
राजा ने पुन: वहाँ जाकर विधि-विधान सहित पूजन कर अम्बिका देवी की आराधना की। अम्बिका देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा - यह मूर्ति माली विद्याधर द्वारा पूजित थी, युद्ध के समय में इसे सरोवर में विसर्जित कर दी गई थी।
__राजा ने देवी से पूछा - यह भगवत् मूर्ति पूजा हेतु हमें कैसे प्राप्त हो सकती है?
देवी ने कहा - ७ दिन के बछड़े को रथ में जोत कर यहाँ आओगे। विधि-विधान सहित याचना करोगे तो यह भगवत् मूर्ति तुम्हे मिल जाएगी।
राजा ने देवी के कथनानुसार कार्य किया और देवी ने वह मूर्ति उन्हें प्रदान कर दी। मूर्ति को उस रथ में विराजमान कर चलने लगे तब देवी ने कहा१११- 'आगे बढ़ते जाना पीछे की ओर मुड़कर मत देखना।' राजा रथ के आगे चला । दूर जाने पर राजा के हृदय में यह विचार उत्पन्न हुआ - 'मैं आगेआगे चल रहा हूँ मूर्ति भी पीछे आ रही है या नहीं?' राजा ने इन विचारों के साथ पीछे मुड़कर देखा तो वह मूर्ति रथ में नहीं थी, किन्तु अन्तरिक्ष में अधर स्थित थी। अतः राजा ने उसी स्थान पर श्रीपुर नगर बसा कर मन्दिर का निर्माण कर प्रतिष्ठा के साथ उस मूर्ति को वहाँ विराजमान कर दिया।
प्रतिमा को लाते समय व्यग्रता के कारण अम्बा अपने एक पुत्र को छोड़ आई थी। उसको लाने के लिए क्षत्रप को आदेश दिया था। संयोग से वह क्षत्रप भी इस कार्य को भूल गया। इस कारण से अम्बा ने रोस से उस क्षत्रप पर दण्ड का प्रहार किया। आज भी क्षत्रप का सिर वहाँ दृष्टिगोचर होता है।
भगवान् के स्नात्र जल से आज भी वहाँ दीपक जलते है और उस स्नात्र के जल से लोगों की बीमारियाँ भी दूर होती है। ६६. टीडा की लोक प्रसिद्ध कथा. किसी नगर में टीडा नामक जोसी रहता था। पत्रा देखकर अपना
शुभशीलशतक
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