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जान लिया। कल यदि लोगों के सामने टीडा ने कह दिया कि हार तो मुद्रा ने लिया है, तो लोग मेरा जीना दूभर कर देंगे और झीटा पकड़ कर मुझे गाँव से बाहर से निकाल देंगे। मेरी इज्जत बनी रहे, इसी में मेरी भलाई है। अत: वह हार टीडा की झोपड़ी में छोड़ कर चली गई।' प्रातः काल हार मिल गया। हार के मालिक की खुशी का कोई पार नहीं रहा। गाँव भर में टीडा की ख्याति फैल गई और लोग जय-जयकार करने लगे।
टीडा की प्रशंसा वहाँ के राजा के कानों में पहुँची। राजा ने सोचा कि लोग इसकी जय-जयकार कर रहे हैं तो इसके ज्ञान के सामने मेरा ठकुराई की कोई इज्जत नहीं रह जायेगी। इसलिए इसका घमण्ड तोड़ना जरूरी है। अतः प्रातः काल एक टीडे को अपनी मुट्ठी में बंद कर सभा में बैठ गया और भविष्यवक्ता पण्डित को बुलाया और कहा - दुनिया की भविष्यवाणी करने वाले हे ज्योतिषि! बताओ मेरी मुट्ठी में क्या है? टीडा सोच-विचार में पड़ गया। उसने सोचा - 'हे टीडा ! आज तेरी मौत आ गई।' इसी सोच-विचार के उधेड़बुन में उसने एक गाथा कही
सूतई सूतई मांडा गण्या, राति भमंतइं गादह लाध। मुद्रडीइं इह हारज गलिओ; हवडां टीडो जोसी ग्रहीओ॥
अर्थात् - सोते-सोते मैंने थापने के आधार पर रोटियों की गणना की, रात को घूमते हुए गधे को ढूंढा, मुद्रा के नाम से हार प्राप्त हुआ, और अब हे टीडा जोसी! तेरे मौत राजा की मुट्ठी में आ गई है।
टीडा शब्द सुनते ही राजा अत्यन्त चमत्कृत हुआ। 'अरे ! इसको कैसे मालूम हो गया कि टीडे को मैंने मुट्ठी में बंद कर रखा है? इसकी तो मैंने हवा भी नहीं लगने दी थी। वास्तव में यह ज्योतिषी तो बड़ा कमाल का है।' राजा बहुत प्रसन्न हुआ। मुट्ठी खोली, टीडा उड़ गया। जोसी का बहुत सम्मान किया गया, गाँव में तो वह सम्मानित था ही। उस दिन से टीडा ने यह गाँठ बांध ली - मन में आए ऐसा नहीं बोलना चाहिए।
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शुभशीलशतक
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