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के लिए वह राजा वहाँ गया। तालाब की खुदाई करने वालों को देखते हुए राजा ने देखा कि इन मजदूरों में उसका पुराना सारा परिवार लगा हुआ है। सोचने लगा, क्या से सब मेरे ही कुटुम्ब वाले हैं? क्या खाने-पीने के अभाव में ये सब लोग यहाँ मजदूरी करने आये हैं? अहो! पूर्व में जैसे कर्म किये हों, वे भोगने ही पड़ते हैं, उससे छुटकारा नहीं मिल सकता। खिन्न मनस्क होकर राजा अपने महल में आ गया।
दूसरे दिन तालाब के काम की निगरानी करने वाले कर्मचारी को यह आदेश दिया कि खुदाई का काम करने वाले इस परिवार के लोगों से आधा काम ही लेना और छुट्टी कर देना। धीमे-धीमे उन लोगों से खुदाई का काम भी बंद करवा दिया।
कुटुम्ब का मुखिया धीर सोचने लगा - राजा ऐसा क्यों कर रहा है? हमसे काम भी नहीं लेता और मजदूरी भी पूरी देता है, किन्तु वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा।
एक दिन राजा ने धीर को कहा- छाछ लेने के लिए बारी-बारी से अपनी बहुओं को मेरे यहाँ भेज देना।
वह कर्म का मारा धीर भी राजा की कृपा मान कर छाछ लेने के लिए अपनी बहुओं को भेजने लगा। क्रमशः छहों बहुए छाछ लेने के लिए राजघर में जाती। राजा के हुक्म से उन्हें छाछ मिल जाती थी। जब सातवीं छोटी बहू छाछ लेने के लिए राजघर में जाती थी तो उसे दूध अथवा दही मिलता था। जब वह छोटी बहू दूध, दही लेकर अपने डेरे पर जाती तो उसकी छहों जेठानियाँ कहने लगीं - यह कुशीला/दुष्ट चरित्रवाली मालूम होती है, न जाने यह किस-किसका घर मांडती फिरेगी? देवर सांतल कहाँ है? जीवित है या मर गया, पता नहीं?
एक रोज जब छोटी बहू छाछ लेने के लिए राजकुल में पहुँची, उस समय राजा सहस्रमल्ल खुद उसके सामने पहुँचा और उसने कहा - हे स्त्री ! तुम यह पुरानी मैली कुचेली कांचली उतार फेंको और नई कांचली धारण करो।
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शुभशीलशतक
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