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सुभद्रा ने यह घटना सुनी, उसे दुःख हुआ कि मैंने तो करुणा-दया भाव से ही मुनि के आँखों से फांस निकाली थी, किन्तु मेरे चरित्र पर जो लांछन लगा कर मेरे धर्म की मजाक बनाई जा रही है, वह ठीक नहीं है । जनता इस बात का बतंगड़ बनाकर मेरे धर्म पर अपवाद पर अपवाद लगाते रहेगी, इसका परिमार्जन आवश्यक है । अतः उसने उसी रात्रि में कायोत्सर्ग ध्यान किया । उसके ध्यान के प्रभाव से शासनदेवी ने प्रकट होकर कहा - हे सुभद्रे ! दैवानुभाव से प्रातः काल ही नगर के सारे दरवाजे बंद हो जाएँगे । आवागमन बंद हो जाने की वजह से लोगों में हा-हाकार मचेगा, उसी समय देववाणी होगी कि 'जो भी पतिव्रता नारी कच्चे धागे / सूत में बंधी हुई चालनी/ छन्नी में कुँए से पानी भरकर नगर के दरवाजों पर छिड़केगी और वे दरवाजे स्वत: ही खुल जायेंगे, असती से कदापि नहीं । '
दैवानुभाव से प्रात:काल ऐसा ही हुआ, नगर में हा-हाकर मचा, आकाश से देववाणी हुई, राजकीय पटह द्वारा उद्घोष किया गया कि 'जो भी नगरवासी चाहे पटह का स्पर्श कर अपना-अपना भाग्य अजमा सकते हैं । ' फलतः प्रत्येक नारी सौभाग्यशाली बनने के लिए उक्त कार्य को करने के लिए आगे बढ़ी किन्तु सबकी सब असफल रही।
अन्त में सुभद्रा ने भी पटह का स्पर्श किया और इस कार्य को करने के लिए आगे बढ़ी। पारिवारिक जनों ने उसकी खूब हंसी-मजाक उडाई और कहा - 'देखो ! यह दुःशीला होकर भी महासती का स्वांग रच कर नगर के दरवाजे खोलने जा रही है ।' लोगों के बोलों को ध्यान में न रखकर वह सुभद्रा आगे बढी और कच्चे धागे में बंधी छन्नी में कुँए का जल भरकर नगर के तीनों दरवाजों पर छिड़का। दैवानुभाव से तीनों ही दरवाजे खुल गये । जन-समुह ने महासती की जय हो ! महासती की जय हो ! यह कहकर
नवाजा।
लोगों ने प्रत्यक्ष में चमत्कार देखा, इसलिए सुभद्रा के द्वारा गृहीत धर्म की प्रशंसा के पुल बांध दिये और लोगों ने उसके धर्म को स्वीकार भी किया। कहा जाता है कि शासनदेवता के कथनानुसार उसने तीन ही दरवाजों
शुभशीलशतक
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