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अर्थात् - जिसका जैसा स्वभाव होता है, वह बदल नहीं सकता। किसी ने कुत्ते की पुछ को सीधी की है?
बिना विचारे जो कार्य करता है, वह अनर्थकारी होता है। कहा है :सहसा विदधीत न क्रिया-मविवेकः परमापदां पदम्। वृणुते हि विमृश्यकारिणं, गुणलब्धाः स्वयमेव सम्पदः॥
अर्थात् - बिना विचारे कोई कार्य सहसा नहीं करना चाहिए क्योंकि अविवेक आपदाओं का स्थान है। सोच-विचार कर कार्य करने वाला गुण और सम्पदा को प्राप्त करता है।
बिना विचारे कार्य करने वाले वे दोनों पिता-पुत्र आजीवन दुःखी रहे। ५२. आचार ही कुल का द्योतक है.
किसी नगर में मदन नाम का ब्राह्मण रहता था। उसके गौरी नाम की पत्नी थी। उनके श्रीधर नाम का पुत्र था। युवावस्था में आने पर वह विद्या ग्रहण करने के लिए दूसरे देशों में गया। श्रीपुर में रहने वाले गदाधर नाम के विद्वान् के पास रहकर श्रीधर ने १४ विद्याओं का अध्ययन किया। उसको गुणवान और विद्वान् समझ कर गदाधर पण्डित ने अपनी लड़की का विवाह उसके साथ कर दिया। दहेज में बहुत धन भी दिया। कुछ समय बाद बहुत धन और अपनी पत्नी के साथ वह श्रीधर अपने पिता के पास बड़े महोत्सव के साथ पहुंचा। कुछ समय के पश्चात् श्रीधर के पुत्र हुआ। जन्मोत्सव मनाया और वर्धमान नाम रखा। बराबरी के लड़कों के साथ वह वर्धमान खेलने लगा। एक दिन उनके घर के आँगन में राज-पुत्र और वणिक्-पुत्र आदि भी क्रीड़ा करने लगे। वणिक्-पुत्र धूली का बाजार बनाकर सामान बेचने लगा। ब्राह्मण-पुत्र अपनी कल्पनाओं के आधार पर मरी हुई भैंस को खेंचने लगा।
इस प्रकार उन्हें अनेक प्रकार की क्रीड़ा करते हुए देखकर वह मदन सोचने लगा - 'यह ब्राह्मण-पुत्र वर्धमान इस प्रकार की क्रीड़ा क्यों कर रहा है?' आश्चर्यचकित होकर मदन ने श्रीधर को पूछा - क्या तुम्हारी पत्नी हारजन की लड़की है? यह जानकारी लेकर मुझे बताना।
शुभशीलशतक
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