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उस मेघ के सोम नामक लड़का हुआ। जन्मोत्सव मनाया, पढ़ा लिखा कर होशियार किया और उसका विवाह भी किया। मेघ सेठ ने वैराग्य उत्पन्न होने के कारण पुत्र को घर का भार सौंप कर दीक्षा ग्रहण की और कर्मक्षय कर मुक्ति में गया। ५७. भवितव्यता के आगे किसी का जोर नहीं है.
एक समय अनिरुद्ध राजा ने गुरु से निवेदन किया - भगवन्! पाण्डव विज्ञ थे, उन्होंने युद्ध क्यों किया? जबकि उनके समय में ही भगवान् नेमिनाथ भी विद्यमान थे।
____ गुरु ने कहा - होनहार/भवितव्यता के आगे किसी का वश नहीं चलता है।
अनिरुद्ध ने कहा - यदि सावधानी रखकर चला जाए, तो कर्म या भवितव्यता क्या करेगी?
गुरु ने कहा - भविष्य में तुम्हें ये कार्य नहीं करने चाहिए? यदि करोगे तो वे तुम्हारे लिए अनर्थकारी होंगे।
___ अनिरुद्ध बोला - भगवन् स्पष्ट करिये, कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?
गुरु ने कहा - तुम्हें चारों दिशाओं में नहीं जाना चाहिए। यदि कदाचित् ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए तो तुम पूर्व दिशा की ओर मत जाना। यदि पूर्व दिशा में भी जाना हो जाए तो शिकार मत करना। यदि शिकार भी करना पड़े तो सूअर का मत करना । यदि सूअर का शिकार भी करना पड़े तो सूकरी का शिकार मत करना। यदि सूकरी का शिकार भी करो तो सफेद रंग वाली का मत करना। यदि सफेद सूकरी का शिकार भी करो तो उसके शव को घर मत ले जाना। यदि तुम उसको घर भी ले जाओ तो उसका माँस मत खाना। संयोग से उस सूकरी का माँस भी खाना पड़े तो उस पर पानी मत पीना । यदि पानी की भी अत्यधिक अभिलाषा हो जाए और पीना पड़े तो उस पर ताम्बूल/पान मत खाना।
शुभशीलशतक
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