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कारागार में ढूंस दिया, कइयों को लोहे की बेड़ियों में जकड़ दिया और कई भले आदमियों की उसने कदर नहीं की। उसके दुर्व्यवहार से प्रजा अत्यन्त दुःखी हो गई।
इधर दीपावली पर्व निकट आ गया। बन्दीखाने में रहे हुए लोगों ने उस पूर्व नौकर के सेठ मंत्री को कहा - वर्ष भर का श्रेष्ठ पर्व दीपावली आ रही है, यदि ३-४ दिनों के लिए हमें बन्दीखाने से छोड़ दिया जाए, तो हम लोग अपने स्वजन-माता-पिता, भाई आदि के साथ मिल कर पर्व को मनावें और आनन्दपूर्वक सुख को भोगे।
उस मंत्री सेठ ने राजा को विशेष आग्रह एवं प्रेम से समझाकर सब लोगों को बन्दीखाने से छुड़वा दिया। उन लोगों भी अपने घर जाकर स्वजनों से मिलकर उनके साथ दीपावली पर बनी हुई मिठाईयाँ आदि खाकर सुख का अनुभव किया।
इसी रात्रि में उस राज्य के अधिष्ठित देव ने प्रकट हो कर राजा को कशाघात/चाबूक से मारने लगा और कहा - 'मैंने तुम्हें इस राज्य में राजा के रूप में इसलिए स्थापित किया है कि तुम प्रजा को दुःख-पीड़ा प्रदान करो। तुम इन्हें कैसे सुखी कर रहे हो? यदि तुम इस जन-समूह को सुखी करोगे तो मैं ऐसे ही चाबूक से मारता रहूँगा।' देवाज्ञा प्राप्त कर राजा प्रजाजनों को पूर्व के समान ही दुःखी करने लगा।
यह देखकर सेठ ने कहा - हे स्वामी ! इन निरपराध लोगों की पिटाई क्यों कर रहे हो?
तब राजा ने रात्रि की घटना सुनाई और कहा - मैं क्या करूँ? "इतो व्याघ्र इतस्तटी" अर्थात् एक तरफ बघेरा है और एक तरफ नदी है।
राजा के इस व्यवहार को देखकर भाग्यवादी असमर्थ लोग इस प्रकार कहने लगे - हमारे भाग्य ही खराब थे इसलिए भाग्य ने इस जैसे दुष्ट को, राजा बनाया और हमने स्वीकार किया, अत: किसको दोष दें।
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शुभशीलशतक
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