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राजा चौंका! और पहरेदारों को कहकर उसे बन्धन में डलवा दिया। राजा की चौथे चरण पूर्ति की समस्या हल हो गई थी। भोज प्रसन्न था। अतः प्रातः काल राजसभा में उस चोर को बुला कर धनादि प्रदान कर सम्मानित किया। ४१. आयु प्रति क्षण घटती जाती है.
एक समय महामन्त्री श्री वस्तुपाल स्तम्भ तीर्थ (खम्भात) गये। वहाँ के लोग उनका कुशल-क्षेम पूछने के लिए आए। मन्त्री वस्तुपाल ने कुशल-खेम का उत्तर देते हुए कहा -
लोकः पृच्छति मे वार्ता, "शरीरे कुशलं तव'। कुतः कुशलमस्माक-मायुर्याति दिने दिने॥
अर्थात् - आप लोग पूछते हैं "आपका शरीर तो कुशल है" किन्तु आप लोग सोचिए, विचार करिए मेरी आयु प्रतिदिन और प्रतिक्षण घटती जा रही है, बतलाइए - मेरा शरीर कैसे कुशलमय होगा? ४२. वस्तु तोलने में छल-कपट.
किसी नगर में व्यापारी सेठ सामान बेचने का धंधा करता था। देते समय में और लेते समय में तराजू की डण्डी में हेर-फेर कर बाँटों में छलकपट का व्यापार करता था। उसने अपने बाँटों के नाम - एक पुष्कर, दो पुष्कर, तीन पुष्कर, चार पुष्कर, पाँच पुष्कर रखे थे। वह जनता को ठगता था, लोगों से अधिक लेता था और कम मात्रा में देता था। इस प्रकार छलकपट का व्यापार करते हुए बहुत धन इकट्ठा किया किन्तु उसके दुर्भाग्य से समाप्त होने वाले प्रति वर्ष में कभी तो उसके घर और गोदाम में आग लग जाती थी, कभी चोर लूट लेते थे और कभी राजा दण्ड के रूप में ग्रहण कर लेता था। घरवाले विचार करने लगे - यह क्या हो रहा है? ।
__ सेठ की छोटी पुत्रवधू ने अपने चिन्तन में यह पाया - सेठजी ! कूट व्यवहार/छल-कपट के द्वारा ही धन को बढ़ाते हैं।
शुभशीलशतक
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