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शतानीक राजा की मृत्यु हो गई। मृत्यु काल के पश्चात् होने वाले समस्त कार्य निपटाने के बाद मृगावती ने गहन चिन्तन किया और इस विभीषिका से बचने के लिए मार्ग खोजा । उसने चण्डप्रद्योतन को कहलाया -मैं तुम्हे चाहती हूँ, किन्तु मेरे पति की अभी मृत्यु हुई है, लोक-लज्जा का भी भय है, अतः मेरे पुत्र की रक्षा के लिए इस दुर्ग को सुदृढ़ बना दीजिए, उसके बाद मैं आपको स्वीकार कर लूँगी। यदि आपने बलात्कार करने की चेष्टा की तो मैं आत्महत्या कर लूँगी।
राजा चण्डप्रद्योतन ने सोचा - 'प्रेम सम्बन्ध दिलों से होता है, बलात्कार से नहीं। उसकी अभिलाषा पूर्ण कर दी जाए। आखिर यह वराकी जायेगी कहाँ?' यह सोचकर राजा ने उस दुर्ग को सुदृढ़ एवं मजबूत बनवा दिया और नगर को धन-धान्य से पूरित भी कर दिया। ऐसा करने पर भी मृगावती उसके पास नहीं आई। चण्डप्रद्योतन ने युद्ध प्रारम्भ किया, किन्तु वह उस दुर्ग को अपने अधिकृत करने में समर्थ न हो सका।
इसी मध्य में श्रमण भगवान् महावीर कौशाम्बी नगरी पधारे । उनका आगमन सुनकर राजा चण्डप्रद्योतन और कौशाम्बी की महारानी मृगावती भी उनको वन्दन करने के लिए वहाँ पहुँचे । वन्दन के पश्चात् भगवान् महावीर का उपदेश सुना। देशना सुनने के बाद महारानी ने प्रभु से निवेदन किया - भगवन् ! मैं आपकी शिष्या बनना चाहती हूँ। आप मुझे दीक्षा प्रदान करें।
मृगावती के इस स्वरूप को देखकर चण्डप्रद्योतन का कामज्वर भी शान्त हो गया और उसने मृगावती से अपने वासनाजन्य अपराध के लिए क्षमा-याचना की। मृगावती ने उसे क्षमा किया। मृगावती ने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। चण्डप्रद्योतन भी भगवान् और महासती मृगावती को नमस्कार कर अपने राज्य की ओर लौट गया। ४४. विद्याभिमानी श्रीधराचार्य.
श्रीधराचार्य नामक ज्योतिष शास्त्र के एक उल्लेखनीय विद्वान् थे। त्रिशती आदि ग्रन्थों का निर्माण करने पर उसके अन्त में अपना नाम लिखकर
शुभशीलशतक
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