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गर्व के साथ निम्न श्लोक भी लिखा करते थे :
उत्तरतः सुरनिलयं, दक्षिणतो मलयपर्वतं यावत्। प्रागपरोदधिमध्ये, नो गणकः श्रीधरादन्यः॥
अर्थात् - उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत है, दक्षिण दिशा में मलय पर्वत है, पूर्व और पश्चिम में समुद्र है। इनके मध्य में श्रीधर के समान अन्य कोई गणक/ज्योतिष शास्त्र का विद्वान् नहीं है।
___कवि ने अपना विरुद सरस्वती-पुत्र रखा था। एक समय देवी सरस्वती ने विचार किया - 'अहो! यह विद्वान् होने पर भी मूर्ख है, इसलिए व्यर्थ में गर्व करता है।' इसलिए ब्राह्मी (सरस्वती) ने बुढ़िया औरत का रूप धारण कर श्रीधराचार्य के पास आई और कहा - तुम सब कुछ जानते हो, मैं कुछ भी नहीं जानती, अत: एक और दो कितने होते है? मेरे प्रश्न का उत्तर दो।
श्रीधर ने कहा - एक और दो, तीन होते है। देवी ने कहा - ऐसा नहीं कहते, सोच कर कहो। तब श्रीधर ने कहा - एक और दो, बारह होते है। यह भी उत्तर ठीक नहीं है।
श्रीधर बोला - ओ बुढ़िया! तुम पागल दिखाई देती हो, जो तुम इतना भी नहीं जानती हो। मैंने जो कुछ बोला, वह असत्य नहीं हो सकता।
देवी ने कहा - वत्स! एक और दो इक्कीस होते है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 'अंकानां वामतो गतिः' अर्थात् अंकों की गति उल्टी होती है। उल्टी गणना करने पर इक्कीस की संख्या आती है।
यह सुनकर श्रीधराचार्य सिर धुनने लगा और विचार कर कहा - हे माता! तुम कौन हो?
देवी ने कहा - मैं काश्मीर देश वासिनी सरस्वती देवी हूँ। तुम्हारा घमण्ड चूर करने के लिए ही मैं यहाँ आई हूँ।
शुभशीलशतक
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