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उस छोटी बहू ने जो न्यायोपार्जित धन था, उस धन का सोने का गोला बनाकर समुद्र में डाल दिया। किसी मच्छ ने अनाज का पिण्ड समझ कर भक्षण कर लिया। मछलीमार ने मच्छों को पकड़ते हुए उसे पकड़ लिया
और उस मच्छ को पकाने की दृष्टि से मार दिया। उस मच्छ के पेट से वह गोला निकला। मच्छमार ने समझा कि यह वजन करने का सेर अर्थात् बाट है। अपने गाँव में इसका उपयोग सेठ ही करता है अतः उसको ला कर दे दिया। यह देखकर छोटी बहू ने कहा - हे ससुरजी! न्याय और शुद्ध मार्ग से व्यवसाय करते हुए हम यदि लक्ष्मी को फेंक भी दें तब भी वह लक्ष्मी अपने
आप यहाँ चली आती है। इसका उदाहरण आपके समक्ष है। अतः आपसे निवेदन है कि व्यापार में छल-कपट छोड कर शुद्ध दृष्टि से व्यापार करें तो अपने घर की लक्ष्मी भी सदा के लिए स्थिर हो जायेगी। किसी भी प्रकार से नष्ट नहीं होगी।
सेठ की आँखें इस उद्बोधन से खुली और उसी दिन से उसने कपटपूर्ण व्यवहार छोड़कर शुद्ध दृष्टि से व्यापार करना चालू किया और उसकी लक्ष्मी स्थिर हो गई तथा वह श्रीमन्त बन गया। ४३. विपदा में समय-यापन ही श्रेष्ठ है.
कौशाम्बी नगरी में शतानीक नाम का राजा राज्य करता था। उसकी महारानी का नाम मृगावती था, जो गणराज्य के संचालक महाराजा चेटक की पुत्री थी। एक समय राज्य सभा में बैठे हुए महाराजा शतानीक ने दूत को कहा - बतलाओ ! जो हमारे देश में न हो और दूसरे के प्रदेश में हो?
दूत ने हाथ जोड़कर कहा - महाराज आपके राज्य में चित्रसभा/ चित्रशाला नहीं है।
राजा ने उसी क्षण चित्रसभा बनाने का कार्यक्रम प्रारम्भ कर दिया और १०० चित्रधारकों को नियुक्त किया।
वहाँ सोम चित्रकार चित्रशाला का निर्माण कर रहा था। किसी समय उसने महारानी मृगावती के पैरों के अगूंठे को देख लिया और कल्पना से
शुभशीलशतक
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