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उस खुरसाणी व्यक्ति के पास कोई लिखा-पढ़ी का कागज नहीं था। आपस में वाद-विवाद बढ़ा। दोनों पक्ष सुलतान की सभा में गये और उनके समक्ष अपने-अपने पक्ष को प्रस्तुत किया।
खुरसाणी ने कहा - 'मैं शपथ लेकर यह कहता हूँ कि इसके पिता के पास मैंने ५ लाख टंक धन रखा था।'
मुहणसिंह का जवाब था - 'पिताजी ने यदि ५ लाख कीमत की कोई वस्तु आप से खरीदी थी, तो उसका भुगतान उसी समय कर दिया होगा।'
वाद-विवाद के अन्त में उस खुरसाणी व्यक्ति ने जगत्सिंह के हाथ का लिखा हुआ पर्चा दिखाया।
तत्काल ही मुहणसिंह ने ५ लाख टंक प्रदान कर दिये। साथ ही १ लाख और अधिक प्रदान कर उसके साथ मैत्री सम्बन्ध स्थापित कर लिया। खुरसाणी बोला – 'सिंह से सिंह ही उत्पन्न होता है, सियार नहीं।'
. वह मुहणसिंह दोनों वक्त प्रतिक्रमण करता था, त्रिकाल देव-पूजन करता था, साधुओं को भोजन-दान देने के पश्चात् ही भोजन करता था और प्रतिवर्ष संघ-पूजा के साथ स्वधर्मीवात्सल्य भी करता था। १५. रत्नों का मूल्य भिन्न-भिन्न है.
एक दिन सभा में किसी जौहरी ने बेचने की इच्छा से सुरत्राण के समक्ष तीन रत्न रखे। सुलतान ने नगर के रत्नपरीक्षक समस्त जौहरियों को उन रत्नों का मूल्यांकन करने के लिए बुलाया। जौहरियों ने तीनों रत्न देखे और किसी निर्णय पर नहीं पहुँच सके। अन्त में जगत्सिंह को वे तीनों रत्न दिखाए। परीक्षण करने के पश्चात् जगत्सिंह ने कहा - 'हे सुलतान ! इसमें यह रत्न बहुमूल्य/अमूल्य है। दूसरा रत्न लाख रुपये का है और तीसरा रत्न कौड़ियों की कीमत का है।'
सुलतान ने पूछा - 'इस अन्तर का कारण क्या है?'
शुभशीलशतक
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