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आचार्य ने उत्तर दिया - 'आपके नगर में जो उपद्रव हो रहा है, ऐसा मैंने सुना है। उस उपद्रव के निवारण के लिए मैंने इन देवियों को बुलाया था। आज से संघ में किसी प्रकार का कोई उपद्रव नहीं होगा। आप दोनों ने देखा है कि उपद्रवकारी दोनों देवियों ने यह स्वीकार किया है।'
तदनन्तर दोनों श्रावक अपने नगर को लौटे। श्रीसंघ के समक्ष पूर्ण घटनाचक्र सुनाया। देवियों के कथनानुसार उपद्रव भी शान्त हो गया था। १७. सुरताण का न्याय.
एक समय मेवाड़ का रहने वाला पाल्हाक नामक वैद्य सुलतान की चिकित्सा करने के लिए वहाँ आया था। एक दिन वह वैद्य कोमलगच्छ के आचार्यों के निवास स्थान पर गया, उस समय वहाँ विराजमान कोमलगच्छ के आचार्यों ने तपागच्छ के आचार्यों की भरपेट निंदा की। तपागच्छ का अनुयायी समझ कर उस वैद्य को वहाँ से निकाल दिया। वैद्य ने अनुभव किया कि वास्तव में आचार्य कोमल अर्थात् शिथिलाचारी हैं । जब यह घटना तपागच्छ के अनुयायिओं को ज्ञात हुई तो वे झगड़े के लिए आमादा होकर वहाँ पहुँच गये, दोनों की आपस में बोलचाल हुई और बढ़ती हुई झगड़े तक पहुँच गई। हाथापाई होने लगी। हाथापाई में कुछ के हाथ टूट गये, कुछ के मुख पर चोट आई। अन्त में आपसी कलह को दूर करने की दृष्टि से दोनों
ओर के लोग सुलतान के पास पहुँचे। दोनों ने अपने-अपने पक्ष रखे। दोनों पक्षों की पूर्ण घटना सुनकर सुरताण ने कहा - 'किसको दण्ड दिया जाए? आप सब न्याय करने वाले है और अभी अन्याय के मार्ग पर चल रहे हैं। जाओ शान्ति से रहो, आगे से किसी प्रकार का झगड़ा मत करना।' १८. तकदीर से प्रस्तर भी रत्न बन जाते हैं.
समुद्र के किनारे बसे हुए भद्रेश्वरपुर में साधु पुरुष जगडू शाह निवास करता है। वह जल और स्थल दोनों प्रकार के व्यवसाय करता है। एक समय जगडू वणिक जहाज में विक्रय योग्य माल रखकर हरिमज द्वीप को गया। वहाँ माल रखने के लिए एक भण्डार/गोदाम किराये पर लिया।
शुभशीलशतक
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