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है, उसका अपने हाथों से ही सद्उपयोग क्यों न कर लूँ? इस प्रकार के विचार पुष्ट होते ही मैंने सारी सम्पत्ति का दान कर दिया।
राजा उसकी दूरदर्शिता पर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और अपने राज्य भण्डार से ४ करोड़ की कीमत का सोना उसे प्रदान किया।
सेठ के पुण्य प्रभाव से जितनी मात्रा में उसने दान किया था, उतनी ही समृद्धि अकस्मात् ही उसको प्राप्त हो गई। अपने जीवन में चिरकाल तक अपनी लक्ष्मी का सात क्षेत्रों में उपयोग करते हुए वह स्वर्ग को प्राप्त हुआ। २७. हीन कुलोत्पन्न विद्वान् श्रेष्ठ कुलीन बन जाता है.
किसी नगरी में एक वेश्या रहती थी। उसके एक पुत्र था । वृद्धावस्था में उस वेश्या ने सोचा - 'मैंने जीवन में बहुत पाप किये हैं। यह पुत्र भी पाप की निशानी है । यदि मैं इसका नाश करती हूँ तो भी मुझे पाप लगता है, अत: मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि गंगा नदी के किनारे जाकर गंगा नदी में स्नान कर अपने पापों का विमोचन कर लूँ।' ऐसा विचार कर वह वेश्या अपने पुत्र के साथ गंगा नदी के किनारे गई, वहाँ मठ बना कर रहने लगी। वहाँ रहते हुए पुत्र के साथ गंगा-स्नान, दान-पुण्य आदि कर्म भी करने लगी। वेदवित् ब्राह्मणों के मुख से सुन-सुन कर वह वेश्यापुत्र भी वेद, स्मृति और पुराणों का ज्ञाता बन गया।
उसको वेदविज्ञ, बहुदानी और विचक्षण जान कर मुकुन्द नामक ब्राह्मण ने विचार किया – ‘ऐसा योग्य लड़का मिलना बहुत कठिन है। मैं यदि अपनी पुत्री का विवाह इसके साथ कर दूँ तो बहुत बढ़िया होगा। देखो! इसकी माता भी कितनी धर्मशीला है, कितना दान देती है। इससे स्पष्ट है कि यह धनवान भी है।' ऐसा विचार करके मुकुन्द ब्राह्मण ने अपनी पुत्री का विवाह मठवासी वेश्यापुत्र के साथ कर दिया। इस उल्लासमय वातावरण में वह वृद्धा पुत्र और पुत्रवधु को अपने कंधे पर बिठाकर नाचती हुए कहने लगी -
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शुभशीलशतक
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