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सन्तान के बिना भी स्वर्गगमन होता है.
पूर्व समय में आलिंग नाम का ब्राह्मण हुआ था । उसके नाम से ही वसती/ ग्राम का नाम भी आलिंग वसती पड़ गया। एक समय आलिंग ब्राह्मण ने धर्मघोषसूरि के मुख से यह सुना - 'जिन मंदिर आदि का निर्माण करने से महान् पुण्य होता है । '
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यह सुनकर आलिंग ने कहा भगवन् लोगों के मुख से मैं यह सुनता आ रहा हूँ कि सन्तान के बिना स्वर्ग नहीं होता है, क्या यह सत्य है ?
धर्मघोषसूरि ने उत्तर दिया- हाँ, सन्तान के बिना भी स्वर्ग जाते हैं। सन्तान की विद्यमानता में जो स्वर्ग प्राप्त होता है, वह अपने किये हुए सुकृत कार्यों के प्रभाव से ही होता है। यदि हम स्वीकार करें कि सन्तान से ही स्वर्ग प्राप्त होता है तो कुतिया बहुत पिल्लों को जन्म देती है, उन्हें भी स्वर्ग मिलना चाहिए? संतान रहित भी मुक्ति को जाते हैं। कहा है
बहूनि हि दिवं गतानि
सहस्त्राणि, विप्राणा-म -मकृत्वा
अर्थात् - कुमार एवं ब्रह्मचारी लोग भी लाखों की संख्या में देवलोक को गये है, अतः कुलसन्तति ही स्वर्गगमन का कारण मानना युक्तिसंगत नहीं है ।
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कुमारब्रह्मचारिणाम्। कुलसन्ततिम् ॥
आचार्य ने कहा यदि भगवान् ऋषभदेव की काले पाषाण की प्रतिमा निर्माण कराई जाए तो अनन्त पुण्य होता है और वह मुक्तिगमन का कारण बन जाता है किन्तु उस व्यक्ति के सन्तान नहीं होती ।
आचार्य के मुख से ऐसा सुनकर आलिंग ने कहा भगवन्! मैं काले पाषाण की भगवान् ऋषभदेव की मूर्ति बनवाऊँगा जिससे मुझे श्रेयस्कर पुण्य की प्राप्ति होगी। मुझे सन्तान से क्या लेना-देना है । सन्तानें होने पर भी रावण, श्रीकृष्ण, दुर्योधन, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती आदि नामधारी पुरुष भी नरक में गये हैं । अतः मैं काले पाषाण की भगवान् ऋषभदेव की
शुभशीलशतक
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