________________
पुत्र - पिताजी ! यह रुखी-सुखी मरुस्थली, मैं बोझ उठाकर चलने में असमर्थ हूँ, क्या कर सकता हूँ?
इसी प्रकार वह माता को भी उस रेतीले प्रदेश में उतार देता है और अपनी इच्छानुसार आगे बढ़ता जाता है। दुर्बल होने पर भी मातापिता दुःखित होकर उस पुत्र के पीछे-पीछे चलने का प्रयत्न करते हैं। ३३. विचारानुसार ही फल की प्राप्ति होती है.
यादृशं क्रियते चित्तं, सदसद्वस्तुवर्णने। कवेरिव भवे तादृग, जनानां भावुकात्मनाम्॥
अर्थात् - सत् और असत् वस्तु के वर्णन में जिस प्रकार की विचारधारा चलती है, वैसा ही कवि वर्णन करता है। उसी प्रकार भावुकजनों के लिए भी मानसिक विचारधारा के अनुसार ही फल प्राप्त होता है।
श्रीराम के समय में सुबुद्धि नाम का कवि था। वह श्रीराम द्वारा निर्मापित पम्पासर का नवीन काव्यों के द्वारा वर्णन करता था। श्रीराम के परिवार में किसी भी प्रकार का रोग हो जाने पर उसकी चिकित्सा के लिए अनेक वैद्य रहते थे। सुबुद्धि कवि द्वारा निरन्तर पम्पासर का वर्णन और निरन्तर ध्यान रहने के कारण उसे जलोदर रोग हो गया। वह रोग बढ़ने लगा। अनेक वैद्यों ने अनेक प्रकार से चिकित्सा की, पर उस चिकित्सा या औषध का उसे फल नहीं मिला। कहा है
वैद्यस्तर्कविहीनो, निर्लज्जा कुलवधूती पीनः । कटके च प्राघूर्णको, मस्तकशूलानि चत्वारि॥
अर्थात् - वैद्यगण तर्कविहीन/विचारशून्य हो, कुलवधु निर्लज्ज हो, वृत्ति/तपस्वी स्थूलकाय हो और सेना में महमान/याचना करने वाला अतिथि हो, तो ये चारों ही सिरदर्द के कारण होते हैं।
___ एक समय विचारशील अनुभवी अवस्थावृद्ध वैद्य वहाँ आया। राजा ने सुबुद्धि के जलोदर की चिकित्सा के लिए आदेश दिया। तब उस वृद्ध वैद्य ने
शुभशीलशतक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org