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प्रतिमा बनवाऊँगा। तत्पश्चात् उसने काले पत्थर की भगवान् ऋषभदेव की प्रतिमा का निर्माण करवाकर अपने मंदिर में स्थापित की। प्रतिदिन भावशुद्धिपूर्वक पूजा और उपासना करते हुए मुक्ति-गमन योग्य प्रकर्ष पुण्य का उपार्जन किया। ३१. शनैश्चर देव सब देवों में बड़ा है.
एक समय देवताओं की सभा में ब्रह्मादि समस्त देव अपने-अपने तेज और प्रताप का वर्णन कर रहे थे। उस समय शनि देव ने कहा - मैं सबसे बड़ा देव हूँ। मैं समस्त देवताओं को सुख अथवा दुःख प्रदान करने में समर्थ हूँ।
उस समय महादेव ने कहा - 'रहने दो, अपनी बड़ाई मत करो, तुम किस प्रकार का सुख-दु:ख दे सकते हो, यह मैं देखूगा।' ऐसा कहकर शिवजी अपने निवास स्थान पर आये और पार्वती के समक्ष इस घटना का वर्णन किया। शनि के घमण्ड को चूर करने की दृष्टि से शिव और पार्वती ने भैंस और भैंसे का रूप बनाया और नगर का जो सबसे बड़ा गदंगी भरा नाला था, दो दिन उसी में निवास किया। तीसरे दिन अशुचिपूर्ण नाले से दोनों निकलकर स्वस्थान को आये। तत्काल ही शनि के पास गये और कहा 'हम दोनों दो दिन तक गन्दे नाले में रहे। तुम अपने प्रभाव से किसी प्रकार का सुख-दुःख नहीं दे सके।'
शनि ने कहा - आप कौन से स्थान पर रहे थे? शिवजी ने कहा - हम गन्दे नाले में रहे।
शनि ने कहा - मैं किसी के कन्धे पर चढ़कर अपना प्रभाव थोड़े ही दिखलाता हूँ। मैं तो उसके हृदय में निवास कर ऐसी बुद्धि पैदा करता हूँ कि स्वयं वह दुःख में फंस जाए। आप दोनों में मैंने ऐसी बुद्धि उत्पन्न कर दी थी कि आप जैसे ईश्वर पुरुष भी दो दिन तक गन्दे नाले में रहे। इससे ज्यादा दु:खदायी स्थिति क्या होगी? हे देव! वस्तुतः मैं किसी को सुख-दु:ख नहीं देता हूँ किन्तु मेरे प्रभाव से उसके कर्म उसी प्रकार के कार्यों के लिए प्रेरित कर देते हैं। मैं तो निमित्त मात्र बनता हूँ।
शुभशीलशतक
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