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हो, तो आप अपनी पुत्री इसको दे सकते हैं। उसकी मूत्रलीला आप देख ही चुके हैं। इससे अधिक मैं क्या कहूँ?
___ अपने मित्र के मुख से यह बात सुनने के बाद वह मदन सेठ वहाँ से वापस लौट आया। कुछ समय पश्चात् वर की खोज करते-करते पद्मपुर निवासी वीर सेठ के पुत्र धरण के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया।
इधर धन सेठ अपने पुत्र कुन्तल को अनेक प्रकार की शिक्षा देता है, किन्तु वह अपने आलसी स्वभाव को नहीं छोड़ता है। वर के रूप में उसको देखने के लिए अनेक सेठ आते हैं, किन्तु उसके इस अरुचिकर व्यवहार को देखकर अपनी पुत्री का सम्बन्ध वहाँ नहीं करते हैं। कहा भी है -
गच्छन् जल्पन् हसंस्तिष्ठन्, शयानो भक्षयन्पुनः । मूर्खः सर्वत्र लभते, पदे पदे पराभवम्॥
अर्थात् - चलते हुए, बड-बड बोलते हुए, बेकार में हँसते हुए, निरुद्देश्य बैठते हुए, सोते हुए और बारम्बार खाते हुए मूर्ख व्यक्ति सब जगह प्राप्त हो जाते हैं और वे पग-पग पर तिरस्कार को प्राप्त करते हैं।
कुन्तल के आलस के कारण उसका विवाह नहीं हुआ। कुछ समय पश्चात् उसके पिता का देहावसान हो गया और वह कुन्तल अपनी मूर्खता, आलस और निखट्टपन के कारण स्थान-स्थान पर अपमान को प्राप्त करता रहा। २५. नागार्जुनः आकाशगामीनी विद्या और रससिद्धि
सौराष्ट्र देश के अलंकारभूत ढुंक पर्वत पर रणसिंह नाम का राजा राज्य करता था। वह न्यायपूर्वक प्रजा-पालन करता था। उसके पद्मावती नाम की रानी थी। उनके एक राजकुमारी थी जिसका नाम भोपाला था। समस्त प्रकार की विद्याओं का अध्ययन करने के पश्चात् तारुण्यावस्था में नवसारिका नगर के भूपति हरिमर्दन के साथ उसका विवाह कर दिया। इधर नागराज वासुकी उसके रूप पर मोहित हो गया था। कहा भी है -
शुभशीलशतक
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