Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 11
________________ [ix ] बनाया है। जिनका समावेश इस छोटी पुस्तक में करना सम्भव नहीं है। यहाँ पर इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि उन्होंने अपने सदुपदेश से कई लोकोत्तर और महान् लोकोपकारी कार्य सम्पादन कसये हैं जो आज भी सुवर्णाक्षरों में अंकित हैं। राजायों और महाराजाओं को छोड़ कर, जैन मंत्रियों और जैन श्रमणों ने, अपनी लक्ष्मी का अटूट सद्व्यय कर, संसार में अलौकिक जैन मन्दिर देलवाड़ा आबू, राणकपुर, श्रवण बेलगोला श्रादि निर्माण करवाये है जो भारत की ही नहीं किन्तु विश्व की अमूल्य निधि हैं। ये अनुपम मन्दिर प्रात्मोत्थान के अमर स्रोत तो हैं ही साथ ही साथ वास्तु और स्थापत्य कला के क्षेत्र में, भी अद्वितीय और अजोड़ हैं। प्रस्तुत पुस्तक में, भगवान महावीर के पूर्व, प्रख्यात तीर्थङ्करों और प्राचार्यों का सूक्ष्म वर्णन करते हुए, भयवान महावीर के जीवन और उपदेश तथा उनकी परम्परा का 2500 वर्ष के इतिहास का सिंहावलोकन किया गया है इसके साथ भगवान महावीर का 2500वाँ निर्वागा महोत्सव जो राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया, उसका भी संक्षिप्त वर्णन किया गया है । अन्त में, अर्बुद-गिरि (प्राबू पर्वत स्थित भगवान महावीर 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव समिति के कार्य विवरण का भी समावेश किया गया है जिसके द्वारा यह पुस्तक प्रकाशित की गई है । स्थानाभाव के कारण, इस पुस्तक में, संभव है कि कुछ प्रभावक श्रमणों और श्रमणियों तथा श्रावक और श्राविकाओं का उल्लेख करना रह गया है, फिर भी आशा करता हूँ कि यह लघु पुस्तक, जैन इतिहास के जिज्ञासुत्रों के लिये परिचयात्मक और लाभदायक सिद्ध होगी और भविष्य में भी वृहद् इतिहास लिखने के लिए प्रेरणास्पद बनेगी । विषय की विशालता और गहनता को दृष्टि में रखते हुए, पुस्तक रचना में त्रुटियाँ और गल्तियां रहना संभव है । जिनको विद्वान् पाठक क्षमा करेंगे और भूल-सुधार के सुझाव देंगे तो उसकी आगामी संस्करण में क्षति पूर्ति की जा सकेगी। इस पुस्तक लिखने में, मुझे जिन ग्रन्थों और पुस्तकों से सहायता प्राप्त हुई, उसके प्रणेताओं और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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