Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 22
________________ ...[ 8 ] इन्द्र ने प्रभु के विषय में यह जानकर कि वे बड़े उपसर्गों (कष्टों) से कंपायमान नहीं होंगे, ‘महावीर' नाम धारण कराया, आठ वर्ष की आयु में ग्रामल-क्रीड़ा की ओर एक मिथ्यादृष्टि देव ने, भयंकर भुजंग और फिर मनुष्य रूप बदल कर खेलते हुए प्रभु के धैर्य की परीक्षा की तो देव हार मान कर चला गया, 8 वर्ष पश्चात् प्रभु को निशाल ( पाठशाला ) पढ़ने को भेजा गया तो इन्द्र को जो ब्राह्मण का रूप कर पाया था शब्द परायण व्याकरण कह कर बतलाई जो लोक में जैनेन्द्र व्याकरण के नाम से प्रख्यात हई ।। ... . यौवनावस्था प्राप्त होने पर, राजा समीर वीर की पुत्री यशोदा नाम की कन्या से विवाह हुआ और प्रिय दर्शना नाम की दुहिता हुई, जिसका विवाह जामाली के साथ हुआ । 28 वर्ष होने पर माता पिता अनशन कर स्वर्गवासी हुए । बड़े भाई नन्दी वर्धन के कहने पर दो वर्ष और गृहस्थावस्था में रह कर 30 वर्ष की आयु में, मार्गशीर्ष कृष्णा 10 वि.सं पू. 51 (568 ई.स.पू.) को दीक्षा अङ्गीकार की और उसके साथ ही मन: पर्यव ज्ञान उत्पन्न हुआ। दीक्षा के बाद साढ़े बारह एक वर्ष पक्ष काल में ग्रामोग्राम विहार करते हए और कठिन तपाचरण करते हुए नाना प्रकार के उपसर्ग सहन किये और ऋजु-वालुका मदी वाले जम्भिक गाँव में, श्यामक नामक किसी गृहस्थ के क्षेत्र में, वैशाख शुक्ला 10 को चार घाती कर्म को तोड़ कर केवल ज्ञान प्राप्त किया। विहार काल में जघन्य उपसर्गों में कठपुतला का शीत उपद्रव, मध्यम उपसर्गों में संगम देव का काल चक्र छोड़ना और उत्कृष्ट उपसर्गों में प्रभु के कानों में कीले का उद्धरण था। साढ़े बारह वर्ष और 1 5 दिन यानि 4515 दिनों में 4166 तप दिन थे और शेष 349 पारणे (भोजन) के दिन थे । केवल ज्ञान होने पर ही वीतराग देव ने समवसरण में बैठ कर प्रथम देशना (उपदेश) दिया जिसका सार यह था कि कर्म बंधन रोकने के लिये, प्राणी की हिंसा नहीं करना, असत्य नहीं बोलना, अदत्त द्रव्य नहीं लेना, अनेक जीवों के उपमर्दन करने वाला मैथुन सेवन नहीं करना और परिग्रह धारण नहीं करना चाहिये । समवसरण के अवसर पर वेदों के पारगामी विचक्षण विद्वान् इन्द्रभूति 1. श्री हिन्दी जैन कल्प सूत्र : प्रकाशक श्री प्रात्मानन्द जैन महासभा जालन्धर शहर सन् 1948 पाना 61 । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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