Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 100
________________ [86] " और इस कार्य में समिति का श्री शान्तिसदन ट्रस्ट के श्री देवाजी महाराज की प्रेरणा से, 5000 रु. की रकम, कुछ वर्षों पूर्व पुस्तकालय के लिये नगरपालिका में जमा थी, वह भगवान् महावीर कक्ष के लिये उपयोग में लाई गई । नगरपालिका ने एतदर्थ महावीर कक्ष के लिये लोहे की अल्मारियाँ और पुस्तकें खरीदी हैं और समिति ने भी कुछ कीमती पुस्तकें रुपया -238) 25 में खरीद कर श्री महावीर पुस्तकालय कक्ष को भेंट की है जिनमें से 'सम्मरण - सुत्त' ' श्रमण भगवान् महावीर' (अंग्रेजी भाग 1-5 ) विशेष महत्व की हैं। श्री देवाजी महाराज शान्ति सदन ने भी 'तीर्थंकर भगवान् महावीर चित्र संपुट' नाम की मूल्यवान् पुस्तक भेंट की जिसमें भगवान महावीर के जीवन और उपदेश को रंगीन चित्रों में प्रदर्शित किया गया है । J 3. श्री महावीर कला-कक्ष - प्राचीन अर्बुद ( आबू ) पर्वत और प्रदेश में, जैन स्थापत्य के कई भूतल भग्नावशेष हैं। विशेषकर पुरातन समृद्धिशाली चन्द्रवती विध्वंस जैन नगरी में ऐसी कई कलाकृतियाँ और मूत्तियाँ मिली हैं, उनका संग्रह भगवान् महावीर के नाम से कला-कक्ष कायम होकर, उसमें किया जावे । यह योजना आबू पर्वत पर ही कार्यान्वित हो, ऐसा समिति का सुझाव रहा है । एतदर्थ समिति ने राजस्थान के पुरातत्व और प्रजायबघर विभाग के संचालक महोदय को प्राबू पर्वत की राजकीय कला - वीथिका में चन्द्रावती की प्राचीन खंडित जैन मूर्तियों का संग्रह करा भगवान महावीर के नाम से कला-कक्ष खोलने का सुभाष प्रस्तुत किया । ऐसा मालुम हुआ है कि राजकीय कला वीथिका में प्राचीन सुन्दर कलात्मक भग्नावशेष लाये जा रहे हैं । प्राशा की जाती है कि राजकीय कला बोधिका प्राबू पर्वत पर, भगवान् महावीर के नाम से राज्य सरकार कला कक्ष खोले जिससे देश श्रौर विदेश के पर्यटक, प्राचीन सुन्दर और उत्कृष्ट जैन कला के नमूनों को देख कर, आबू के प्राचीन साँस्कृतिक गौरव की अनुभूति कर सके । समिति इस दिशा में केवल सुझाव ही देने में अग्रसर रही है । भविष्य में, समिति इस ओर प्रगति की कामना करती है । " अन्तिम समिति ने तृनीय शरद् समारोह के अन्तर्गत जो प्रदर्शनी माउण्ट आबू पर 21 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक प्रायोजित हुई उसमें 'महावीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108