Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 102
________________ [88] परिशिष्ट-5 जैन ध्वज की विशिष्टता जैन समाज का यह सर्वमान्य ध्वजचंच परमेष्ठी का प्रतीक रूप-पांच रंगों में प्रदर्शित किया गया है ध्वज के पांच रंगों की पहचान इस प्रकार हैलाल रंग................सिद्ध पीला रंग............. प्राचार्य सफेद रंम.................."अरिहंत • हरा रंग ............"उपाध्याय काला रंग ................साधु बज.के. उपरोक्त पांच रंग, · पांच महाव्रत रूप से भी · इस प्रकार सूलक हैं-साल रंग........ सत्य, पीला रंग.......: अचौर्य, - सफेद रंग........ अहिंसा, हरा रंग......."ब्रह्मचर्य, और काला रंग......"अपरिग्रह । मंच परमेष्ठी में अहंत और महाव्रत में अहिंसा का विशेष महत्त्व होने से, सद रंग को मध्य में रखा गया है। ध्वज के बीच में चतुर्गति प्रतीक रूप स्वस्तिक को दर्शाया गया है । स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु है जो सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र के सूचक हैं। तीन बिन्दुओं के ऊपर अर्द्ध चंद्र सिद्धशिला को लक्षित करता है और अर्द्ध-चन्द्र के ऊपर एक बिन्दु है जो मुक्त जीवन अर्थात मोक्ष का सूचक है। ००० ज जैन संस्कृति में स्वास्तिक का विशेष महत्त्व है अतः इसको ध्वज के बीच में रखा गया है। चतुर्गति संसार में परिभ्रमण का कारण है और इस से आगे बढ़ कर अहिंसा को आचरण में लाने और अर्हन्त को हृदय से अपनाने पर, निर्वाण की प्राप्ति की जा सकती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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