Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 55
________________ [41] विजय सूरिजी, श्री विजयदान सूरिजी आदि ने अनेक राजपूतों, जाटों को) उपदेश देकर अहिंसा धर्म का प्रचार किया और बड़ौदा नरेश को भी प्रतिबोध ) किया। इसी प्रकार प्रा. बुद्धिसागरजी, प्रा. विजय केशर सूरिजी अादि ने छोटे-छोटे राजाओं और राजपूतों को उपदेश देकर अहिंसा का पालन कराया। प्रा. विजय शान्ति सूरिजी ने बीकानेर, लींवड़ी और जोधपुर आदि के राजा महाराजाओं को अपने धर्मोपदेश से मांसाहार और शिकार छुड़ाया । प्रा. । चरित्र विजय जी ने पालीताणा के तत्कालीन एडमिनिस्ट्रेटर (प्रशासक) मेजर स्ट्रोंग तथा पालिया, लाकड़िया आदि राजानों को प्रतिबोध देकर सुकृत कार्य किया और कितनेक राजपूतों और अधिकारियों का मांसाहार त्याग करवाया। पाबू के योगीराज श्री विजय शांति सूरिजी ने बीकानेर, लींबड़ी, जोधपुर आदि राजा-महाराजा, राजपूतों और अंग्रेज अधिकारियों को प्रतिबोध कर माँसाहार छुड़ाया और शिकार तया व्यसनों को बन्द कराया । 25 वीं वीर शताब्दी में कई महान् प्राचार्य हुए हैं जिन्होंने इस युग में धर्म प्रचार और प्रसार में महान योगदान दिया है। सबसे प्रथम श्री मोहनलालजी महाराज (श्री मुक्ति विजयजी) पाते हैं जिन्होंने वी. सं. 2401 (वि. सं. 1931-ई. सं. 1874) सवेगी दीक्षा ग्रहण की । भारत की अलबेली नगरी बम्बई में धर्म का अंकुर बोने में पहल करने वाले और विशाल धर्म वृक्ष की वृद्धि करने वाले श्रमण हुए हैं । उनका स्वर्गवास वी. सं. 2433 (वि. सं. 1963-ई. स. 1906) में हुआ था। योगनिष्ठ श्री बुद्धिसागरजी महाराज की दीक्षा वी सं. 2427 (वि.सं. 1957-ई. स.1900) और स्वर्गगमन वी. सं. 2451 (वि.सं. 1981-ई. स. 1924) में हुआ ये एक उत्तम योगी,साहित्य के विशिष्ट विलासी,आध्यात्मिक ज्ञान के अपूर्व निधि और जैन समाज के अद्वितीय प्रतिनिधि थे जिन्होंने 125 अपूर्व ग्रन्थों की रचना की। उनके शिष्य प्रख्यात आत्मारामजी महाराज थे जिन्होंने वी. सं. 2402 (वि. सं. 1932-ई. स. 1875) में श्री बूटेराजजी महाराज से दीक्षा ली और विजयानन्द-सूरिजी तरीके विख्यात हुए। जन्म संस्कार से सिक्ख धर्म पालने वाले थे। उन्होंने जैन धर्म की जितनी रक्षा की उतनी किसी अन्य ने नहीं की। शिकागो (अमेरिका) में 'विश्व धर्म परिषद्' में वीरचन्द राघवजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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