Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 70
________________ [56] सार रूप ग्रन्थ मूल प्राकृत, संस्कृत और हिन्दी भाषा में प्रकाशित हुआ जिसका नाम 'सम्मरण - सुत्त' रखा गया | 12. बिहार राज्य में श्रमण श्री श्रमर मुनि की प्रेरणा से राजगृही में 'वीरायतन' और राजस्थान के लाडनू में प्राचार्य श्री तुलसी गरिण के उपदेश से 'जैन विश्व भारती', पंजाब में महावीर फाउण्डेशन, आसाम में हिंसा समाज आदि चिर स्थायी संस्थानों के स्थापित किये जाने के निर्णय लिये गये और कहीं कहीं उनका कार्य भी प्रारम्भ हो गया । केन्द्र और राज्य सरकारों ने एतदर्थं धन, भूमि आदि देकर सहायता प्रदान की । भगवान् महावीर के उपदेश केवल जैनियों के लिये ही नहीं थे किन्तु विश्व के समस्त प्राणियों के उपकार के लिये थे । अतः उनके धर्मोपदेश का विविध प्रकार से व्याख्यानों भाषणों द्वारा प्रचार किया गया । कुछ स्थानों पर, उनके सदुपदेश महावीर स्तम्भ निर्माण किये जाकर उनके शिलापट्ट पर अंकित किये गये । विशाल जन समूह ने भक्ति-भरी और भाव-भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए भगवान् महावीर के 2500 वां निर्वाण महोत्सव को सजीव, सार्थक और सफल बनाया । इस वर्ष से भिन्न-भिन्न राज्यों में जो कार्य किये गये और किये जाने के संकल्प लिये गये, उनका सूक्ष्म अवलोकन आगे किया जाता है । विविध राज्यों में महावीर निर्वारण महोत्सव - सबसे प्रथम दिल्ली भारत की राजधानी से प्रारम्भ करते हैं । भूतपूर्व राष्ट्रपति स्व. श्री फखरुद्दीन अली अहमद ने 13 नवम्बर 1974 के दिन भगवान महावीर की अन्तिम चरण स्पर्शित पावन भूमि पावापुरी के जल मन्दिर की प्रतिकृति वाला खास डाक टिकट का उद्घाटन किया । राष्ट्रभवन के प्रसिद्ध अशोक हॉल में, भगवान् महावीर के 2500 वां निर्वाण कल्याणक महोत्सव का मंगल प्रारम्भ किया। उद्घाटन समारम्भ में राष्ट्रपति ने कहा कि भगवान् महावीर ने अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्त और सहिष्णुता का मार्ग बतलाया, जिस पर चलने से ही अपनी समस्याओं का समाधान हो सकता है । निर्वाण महोत्सव आठ दिन तक चला । 13 नवम्बर को ध्वजारोहरण, निर्ग्रन्थ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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