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प्रणुचितिय वियागरे ।
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- सूत्रकृतांग 119125
- श्री महावीर वाणी
4. प्रशस्ति संस्कृत भाषा में नीचे लिखे अनुसार है
"भगवान् महावीर द्विसहस्र पंचशततम निर्वाण महोत्सव समितिः अर्बुदाचले नक्की सरोवरे वीर संवत् 2502 तमे (विक्रम संवत् 2032 तमे) 17001 रुप्यकानां सद्व्ययः कृत्वा भगवान् महावीर स्तम्भस्य निर्माणं शिल्पिना काशीराम बी. दवे महोदयेन कारयित्वा पुनश्च प्रर्बुदाचल नगरपालिकां संरक्षणार्थमर्पयत् यस्य उद्घाटनं 12 नवम्बर दिवसे 1975 रिस्ताब्दितमे कार्तिक शुक्ल नवम्यां तिथौ श्रीमत् तुलसीराम जी, सिरोही जिलाधीशस्य वरद् हस्तेन सम्पन्नोऽभवत् । शुभमस्तु ॥ " 5. संस्कृत में 'भगवान् महावीर स्तम्भ:' लिखा हुआ है । 6. जैन प्रष्ट मंगलिक के आकार अंकित है जिसके नाम हैं- 1. स्वास्तिक 2. श्रीवत्स 3. नन्द्यावर्त 4. वर्धमानक 5. महासन 6. कलश 7. मीनयुगल 8 दर्पण |
3. उत्तराभिमुख भाग पर क्रमशः नीचे लिखे अनुसार, आकार और अक्षर अ ंकित है -
1. सबसे ऊपर, शिखर के बाहरी तरफ सिंह का आकार है और उसके नीचे धर्म चक्र के वृत में अहिंसा शब्द प्रालेखित है ।
2. तत्वार्थ सूत्र का पहला श्लोक का हिन्दी भाषान्तर इस प्रकार ख़ुदा हुग्रा है - 'सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र यही मोक्ष मार्ग है ।'
3. जैन धर्म के उपदेश हिन्दी भाषान्तर में निम्न लिखे हुए हैं
जैन धर्म के उपदेश हिन्दी भाषान्तर
1. धर्म सबसे उत्कृष्ट मंगल है, धर्म, अहिंसा, संयम और तप, जिसका मन सदा धर्म में रत रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं ।
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