Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ [80] 2 क्षमा, सन्तोष, सरलता और नम्रता ये चार धर्म के द्वार हैं । 3 धर्म का मूल विनय प्राचार-अनुशासन है। 4. सब प्राणियों को अपनी जिन्दगी प्यारी है। सुख सबको अच्छा लगता है और दुःख बुरा । वध सबको अप्रिय है और जीवन प्रिय । सब प्राणी जीना चाहते हैं, कुछ भी हो सबको जीवन प्रिय है। अतः किसी भी प्राणी की हिंसा न करो। 5. जो संसार के दुःखों को जानता है, वह ज्ञानी कभी पाप नहीं करता। 6. मूर्छा-प्राशक्ति को ही वस्तुतः परिग्रह कहा है । अधिक मिलने पर भी संग्रह नहीं करे, परिग्रह वृत्ति से अपने को दूर रखे। 7. सदा हितकारी वचन बोलना चाहिये। 8. बिना दी हुई किसी भी चीज को नहीं लेना चाहिये । 9. बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिये कि वह प्राणी से न किसी को तुच्छ बताये और न झूठी प्रशंसा करे । . 10. समभाव ही चरित्र है । / 11. सदा सत्य में दृढ़ रहो । 11. तपों में श्रेष्ठ तप ब्रह्मचर्य है। 13. कर्मकर्ता का ही अनुगमन करता है। 14 दानों में अभयदान श्रेष्ठ है। / 15. जो कुछ बोले पहले विचार कर बोले । -श्री महावीर वाणी 4. प्रशस्ति हिन्दी में निम्नांकित शब्दों में दर्ज है "भगवान् महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव समिति आबू पर्वत ने भगवान महावीर स्तम्भ नक्खी झील पर वीर संवत् 2502 वि. सं. 2032 में रु. 17001 सद्व्यय कर शिल्पी काशीराम बी. दवे से निर्माण करावाया और पुनः नगरपालिका आबू पर्वत को संरक्षणार्थ अर्पण किया एवं उदघाटन 12-11-1975 ई. को श्री तुलसीरामजी जिलाधीश सिरोही के वरद् हस्त से सम्पन्न हुआ। काती सुदी 9 शुभमस्तु ।" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108