Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 90
________________ [76] 2004 भावामावर 2000! परस्परोपग्रहो जीवानाम् जैन प्रतीक, त्रिलोक का आकार-पुरुषाकार में दिखलाया गया है जिसका जैन शासन में महत्वपूर्ण स्थान है और यह सर्वथा मंगलकारी है । सबसे प्रयम तीन बिन्दुए', त्रिरत्न-सम्यक् दर्शन,सम्यक् ज्ञान,सम्यक चरित्र की सूचक है और उसके ऊपर अर्द्ध चन्द्र,सिद्ध शिला मोक्ष को लक्षित करता है । स्वास्तिक के नीचे जो हाथ अंकित है वह अभयदान का बोध कराता है एवं जो हाथ के मध्य में चक्र है,वह अहिंसा का धर्म चक्र है और चक्र के बीच में अहिंसा लिखा हुआ है। प्रतीक शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है । त्रिलोक आकार में प्रतीक का स्वरूप, यह बोध कराता है कि चतुर्गति-मनुष्य, देव, तीर्यञ्च और नरक योनि-में भ्रमण करती हुई आत्मा, अहिंसा धर्म को अपनाकर के, सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र द्वारा मोक्ष पद प्राप्त कर सकता है। प्रतीक के नीचे 'परस्परोपग्रहो जीवामां' का अर्थ है कि जीवों का परस्पर उपकार है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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