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[55] प्राजीवन कारावास की सजा में परिवर्तन करने आदि के विशेष प्रादेश
कुछ राज्यों में जारी किये गये । 5. लोकोपकारी कई कार्य हुए जिनमें से अशक्तों को भोजन, बालकों को
मिठाई, अस्पताल के रोगियों को फल, अंधजनों को बस्त्र और धन दान
एवं विकलांगों की सहायता करना मुख्य है । 6. निर्वाण महोत्सव की स्मृति में चांदी के सिक्के भी बनाये गये और बिहार
में पावापुरी के जैन मन्दिर भगवान महावीर का निर्वाण स्थल की लाप वाला डाक टिकट जारी किया गया। देश में भगवान महावीर के नाम की शिक्षण संस्थाएं स्थापित हुई और कुछ विश्वविद्यालयों में जैन शोध-सस्थान भी खोले गये तथा सार्वजनिक पुस्तकालय, वाचनालय और संग्रहालय में महावीर कक्ष कायम किये गये। 3. सैंकड़ों की संख्या में भगवान महावीर और जैन धर्म के विषय पर पुस्तकें,
चित्र-संग्रह, अनेकानेक सामयिक समृद्ध और सचित्र विशेषांक मोर
स्मारिकाएं प्रकाशित की गई। . आकाशवाणी (पाल इण्डिया रेडियो) पर जैन स्तवन, भजन, भाषण सुनाये गये और जैन तीर्थ सम्बन्धी दस्ताबेजी ( डोक्यूमेण्ट्री) फिल्में
भी बनी। ). देश भर में भगवान महावीर का 'धर्मचक्र' घूमा और कई नगरों, कस्बों
और गाँवों में धर्म-चक्र की शोभा यात्राएँ निकलीं जिसमें सहस्रों नरनारियों ने भगवान महावीर की जय बोली । जैन मन्दिरों, उपाश्रयों और स्थानकों में तप, जप, ध्यान के अनुष्ठान सम्पादित हुए। जैन-धर्म के अलग-अलग सम्प्रदायों में भाईचारा और सहकार को प्रोत्साहन देने के लिये एक जैन-प्रतीक और एक जैन-ध्वज प्रचलित किया गया और सर्व सम्प्रदायों के श्रमणों का मान्यता प्राप्त जैन धर्म का - 1 जैन-प्रतीक के महत्व के लिये परिशिष्ट 3 पृ. 75-76 देखें ।
2 जैन-ध्वज की विशिष्टता के लिए परिशिष्ट 5 पृ. 86 अवलोकन करें।
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