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परिषद्, 15 को श्रमण संस्कृति परिषद्, 18 को निर्वाणवादी विचारधारा के योगदान पर संविवाद, 19 को अनेकान्त परिषद् और 20 को भावी विकास योजनाएं दीक्षा समारम्भ आदि विविध कार्यक्रम हुए।
___ भगवान महावीर के 2500 वां निर्वाण कल्याणक के ऐतिहासिक और मंगल दिवस के दिन, भूत-पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने भारतीय संस्कृति के ही नहीं, विश्व के ज्योतिर्धर परमतारक तीर्थंकर परमात्मा भगवान श्रीमहावीर स्वामी को भावभीनी वन्दना करते हुए कहा कि प्राज से ढाई हजार वर्ष पहले भगवान महावीर ने जो सत्य की शोध की वह आज भी उतनी ही सत्य है। दिनांक 17-11-74 को दिल्ली के रामलीला मैदान पर दो लाख मेदिनी की भारी सभा का आयोजन हुआ। इस सभा की अध्यक्षता श्रीमती इन्दिरा गांधी एवं दो लाख जनसमूह का, अखिल भारतीय निर्वाण महोत्सव समिति के प्रमुख सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई ने स्वागत किया। सेठ श्री के स्वागत भाषण और भूतपूर्व बड़े प्रधान के प्रवचन के बाद, आ. श्री विजयसमुद्रसूरिजी, प्रा. श्री तुलसीजी, प्रा. श्री धर्मसागरजी, उपाध्याय श्री विद्यानन्द मुनिजी ने अपने-अपने प्रवचनों में भगवान महावीर का गुणानुवाद किया। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने अध्यक्ष-पद से बोलते हुए कहा कि धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा के लिये, दूसरे क्या कहेंगे इसकी चिन्ता नहीं करना चाहिये और अपने को अपने मार्ग पर ही चलते रहना चाहिये। भगवान महावीर ने अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य को सबसे अधिक महत्व दिया था । आधुनिकता और विज्ञान की नई जगमगहाट में भी, जीवन में स्थायी शान्ति और विश्वकल्याण के लिये, उनके सिद्धान्त, आज भी उतने ही मूल्यवान हैं । उन्होंने और कहा कि सहिष्णुता भारतीय संस्कृति की महान् और सबसे बड़ी देन है। भगवान महावीर ने अहिंसा को परमधर्म माना था। महात्मा गांधी तक, यही विचार सर्वोपरि रहा है। भगवान महावीर को अपनी श्रद्धांजलि अहिंसा के मार्ग पर चलने का व्रत लेकर ही अर्पण कर सकते हैं । महासमिति के कार्याध्यक्ष साहु श्री शान्तिप्रसाद जैन ने आभार वादन किया और श्रीमती इन्दिरा गांधी को श्री अमलानन्द घोष संपादित 'जैन कला और स्थापत्य' नाम का बहुमूल्य ग्रन्थ भेंट दिया। 16 नवम्बर 1974 को 7 मील
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