Book Title: Shraman Parampara Ki Ruprekha
Author(s): Jodhsinh Mehta
Publisher: Bhagwan Mahavir 2500 Vi Nirvan Samiti

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Page 65
________________ [51] थे। मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा फतहसिंहजी ने उदयपुर में सांवलदासजी की बाड़ी में उनके दर्शन किये थे।.. 6. छठे प्राचार्य श्री माणक गरिण ( वी. सं. 2419 से 2424वि. स. 1949 से 19.54-ई. स. 1892 से 1897). हुए जो दयालु, उदारमन और देशाटन की तीव्र रुचि वाले सन्त थे। उनका विहार क्षेत्र मेवाड़, मारवाड़, ढूढाड़, थली हरियाणा आदि रहा है । उन्होंने अपना जीवन संद्धान्तिक ज्ञान अजित करने में व्यतीत किया और संस्कृत विकास की भोर ध्यान दिया। 7. सातवें प्राचार्य श्री डाल गणि (वी. स. 2424 से 2436विसं.1954 से 1966 ई.स. 1897 से 1909 माने जाते हैं जो कच्छ के श्री पूज्य तरीके प्रसिद्ध हुए। वे सिद्धान्तवादी, निर्भीक और तेजस्वी प्राचार्य थे। उनका विहार अधिकतर थली (बीकानेर) मारवाड़, मेवाड़, ढुंढाड़, मालवा, गुजरात, कच्छ आदि प्रदेशों में हुआ। उन्होंने पालीतारणा जाकर शत्रुञ्जय की यात्रा भी की थी। 8 आठवें प्राचार्य श्री कालू गणि(वी.सं 2436 से 2462- वि. सं. 1966 से 1992-ई स 1909 से 1935), पुण्यवान प्रभावशाली न्यायवादी हुए हैं जिनका जन्म शताब्दी समारोह वि स 2033 में मनाया गया था । तेरापंथ के लिये उनका शासनकाल स्वरिणम काल गिना जाता है। उनके समय में, पुस्तक भण्डार, श्रमण संघ, श्रावक वर्ग, कला विज्ञान उपकरण व लिपि का विकास और विस्तार हुमा । भारत में सर्व क्षेत्रों में साधु भेजकर तेरा पंथ का प्रचार व प्रसार किया। उनका विहार क्षेत्र थली, मेवाड़ मारवाड़, ढूढाड़, पंजाब, हरियाणा माना जाता है। ये सस्कृत विद्या के वट-वृक्ष थे और उनकी कृति 'भिक्षु शब्दानुशासन' प्रसिद्ध ग्रंथ के रूप में प्रकट हुई। यही नहीं स्वयं अध्ययन करते थे और अध्यापन कराते भी थे। बालक साधुओं के भावी जीवन के निर्माणकर्ता थे। वे स्वमत परमत सिद्धान्तों के मर्मज्ञ और काव्यप्रेमी भी थे। उन्होंने तेरा पंथ समाज की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की। तेर। पंथ को ये मातृ वात्सल्य पूर्ण भाचार्य मिले। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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